भारत में बकरी पालन प्रणाली। Goat Farming System in India |

Goat Farming System से हमारा आशय बकरी पालन प्रणाली से है इंडिया में किसानो एवं उद्यमियों द्वारा अपनी गुज़र बसर अर्थात कमाई करने के लिए विभिन्न Systems के अंतर्गत बकरी पालन बिजनेस किया जाता है। इन Systems में चार प्रकार के मुख्य Systems हैं इनका वर्णन संक्षिप्त तौर पर निम्नवत करेंगे।

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1. व्यापक प्रणाली (Extensive Goat Farming System):

Extensive system की यदि हम बात करें तो हिंदी में इसे विस्तृत प्रणाली कहा जाता है जिसका अभिप्राय यह है की इस प्रणाली के अंतर्गत बकरियों को खुला छोड़कर पाला जाता है। भारत के अनेक क्षेत्रों में इस तरह की बकरी पालन प्रणाली बेहद प्रचलित है। शोध एवं आंकड़ों से ज्ञात हुआ है की यदि किसी बकरी को दिन में 8-10 घंटे खुला छोड़ दें तो वह अपने भोजन का प्रबंध खुद कर अपना पेट पूर्ण रूप से भर लेती है।

लेकिन इसके अलावा यह जरुरी हो जाता है की बकरी के पूर्ण विकास के लिए उसे घर में आवश्यकतानुसार दानेदार भोजन भी खिलाया जाय। प्राचीन काल में जहाँ आबादी वाले क्षेत्रों के साथ खुले मैदान या जंगल भी हुआ करते थे जहाँ लोग अपने मवेशियों को चराने ले जाया करते थे। वर्तमान में जनसँख्या वृद्धि के कारण कहें या अन्य किसी कारण सचाही यह है की मवेशियों को चराने की जगह कम होती जा रही है।

यही कारण है की उद्यमियों या किसानो द्वारा इस प्रकार की बकरी पालन प्रणाली को अपनाया जाना दिनों दिन कम होता जा रहा है। आने वाले दिनों में यह बकरी पालन प्रणाली लुप्त भी हो सकती है।

2. सघन प्रणाली (Intensive Goat Farming System):

वर्तमान में व्यवसायिक तौर पर अपनाई जाने वाली यह बकरी पालन पद्यति बेहद प्रचलित है। इस बकरी पालन प्रणाली के अंतर्गत बकरियों को एक निश्चित स्थान में रखकर पाला पोसा जाता है, यद्यपि Intensive Goat Farming System के अंतर्गत दो तरीकों से बकरी पालन किया जाता है। बकरियों के लिए Stall feeding System का निर्माण करके उन्हें कटी हुई घास एवं दानेदार भोजन एक निर्धारित बाड़े में ही खिलाया जाता है।

दूसरे तरीके में किसी स्थान विशेष पर एक विशेष घास उगाई जाती है और उस स्थान में बकरियों को चरने हेतु छोड़ दिया जाता है। और जहाँ तक दानेदार भोजन का सवाल है वह बकरियों को उनके बाड़े में ही दी जाती है इस प्रणाली में बकरियों के चराने की जगह को Pasture अर्थात चारागाह कहा जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक इस विधि को अपनाने में एक हेक्टेयर जमीन में अधिक से अधिक 60 बकरियों को तक पाला जा सकता है। लेकिन यह आंकड़ा घास का प्रकार, खाद का प्रयोग एवं सिंचाई इत्यादि व्यवस्था के आधार पर अंतरित हो सकता है।

इस पद्यति के बारे में यदि हम थोड़ी विस्तृता से बात करेंगे तो हम पाएंगे किस इस पद्यति में एक एक बकरी को चराने हेतु एक दिन में लगभग 2 वर्गमीटर घास उगी हुई जगह चाहिए जिसका अभिप्राय यह है की एक बकरी के लिए 23 दिनों के लिए हमें लगभग 46 वर्गमीटर घास उगी जगह की आवश्यकता होगी। इसलिए उद्यमी या किसान को एक बकरी के लिए 46 वर्गमीटर जगह को 23 भागों में विभाजित करना होगा ।

और प्रत्येक दिन 2 वर्गमीटर जगह में एक बकरी को चराने छोड़ना होगा जब 22 दिन बाद बकरी अंतिम हिस्सा चर रही होगी। इतने दिन में जिस हिस्से को बकरी ने पहले दिन चरा था उसमे भी घास उग गई होगी हाँ उद्यमी या किसान को एक बात का अवश्य ध्यान रखना होता है। की बकरी के चरने के बाद उस हिस्से की सिंचाई अवश्य की जानी चाहिए, और बकरियों का मल मूत्र खाद के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। एक आंकड़े की मानें तो इस प्रणाली को अपनाकर 1 बीघा जमीन में लगभग 25 बकरियों को आसानी से पाला जा सकता है।

3. अर्ध गहन प्रणाली (Semi Intensive Goat Farming System):

Semi Intensive System को अर्ध गहन प्रणाली भी कहा जाता है इसकी ख़ास बात यह है की यह बकरी पालन प्रणाली Extensive एवं Intensive System के बीच की प्रणाली है। इस सिस्टम में बकरियों के आवास के साथ संग्लग्न एक फार्म हाउस, या बहुत बड़ा क्षेत्र होता है। जिसमे बकरियों को प्रतिदिन लगभग 4-5 घंटे चरने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके अलावा अन्य समय में बकरियों को आवास के अन्दर बंद करके कटी हुई घास, पेड़ों की पत्तियां या अन्य हरा चारा और दानेदार भोजन समय समय पर खिलाया जाता है।

4. Tethering Goat Farming System:

ऐसे बहुत सारे क्षेत्र होते हैं जहाँ खुले में बकरियों का पालन करना बेहद कठिन होता है अर्थात वहां बकरियों को खुला नहीं छोड़ा जाता । ऐसे में इन क्षेत्रों में बकरियों को एक लम्बी रस्सी से किसी स्थान विशेष में उपलब्ध पेड़ से बाँध लिया जाता है। ताकि बकरी सिर्फ जितनी लम्बी रस्सी है उतने ही क्षेत्र को चरने में समर्थ हो।

जिस रस्सी पर बकरी को बाँधा जाता है उसकी लम्बाई उद्यमी या किसान अपने मन मुताबिक रख सकता है। लेकिन सामान्यतया इसकी लम्बाई 3-5 मीटर तक होती है। इसके अलावा यदि उस स्थान विशेष में बकरी के चरने के लिए घास कम हो जाती है तो उद्यमी या किसान बकरी का स्थान परिवर्तन करा सकते हैं। बारिश के मौसम अर्थात वर्षा ऋतू में यह बकरी पालन प्रणाली कारागार नहीं है।

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