कैश क्रेडिट एवं ओवरड्राफ्ट में क्या क्या अंतर होते हैं |

आम तौर पर कमाई करने के लिए दो बेहतरीन माध्यमों बिज़नेस एवं नौकरी का उपयोग ही अधिकाधिक किया जाता है | और बिज़नेस बैंकिंग में बिज़नेस लोन का बड़ा महत्व होता है क्योंकि बिजनेसमैन को अपने व्यापार को शुरू करने या विस्तृत करने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है | इसी पैसे की आवश्यकता के चलते बिजनेसमैन को किसी बैंक से लोन लेने की आवश्यकता हो सकती है | सामान्य तौर पर एक व्यापारी के पास बैंक से ऋण लेने के लिए दो विकल्प मौजूद होते हैं |

पहला विकल्प दीर्घावधि के लिए लोन लेना जैसे किसी सम्पति के खिलाफ ऋण लेना इत्यादि | और दूसरा विकल्प बैंक द्वारा दी जाने वाली फैसिलिटी जैसे ओवरड्राफ्ट एवं कैश क्रेडिट के माध्यम से अपनी फण्ड सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति करना होता है | यद्यपि दीर्घकालिक ऋण विकल्पों में ब्याज दर कम होती है जबकि ओवरड्राफ्ट एवं कैश क्रेडिट जैसी फ्लेक्सिबल सुविधाओं वाले खातों में अतिरिक्त धन जमा करके ब्याज से बचा जा सकता है |

और इस प्रकार इन सुविधाओं के माध्यम से केवल उस राशि पर ही ब्याज देना होता है जिसका इस्तेमाल हुआ हो | इससे पहले हम इन दोनों सुविधाओं के बारे में अलग अलग लेख के माध्यम से इन पर विस्तृत तौर पर जानकारी मुहैया करा चुके हैं जिनका लिंक हम इस लेख के अंत में देने वाले हैं | लेकिन आज हम ओवरड्राफ्ट एवं कैश क्रेडिट में क्या अंतर होते हैं? के बारे में जानने की कोशिश करेंगे |

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कैश क्रेडिट एवं ओवरड्राफ्ट में अंतर (Difference Between Cash Credit and Overdraft):

जैसा की हम सबको विदित है की कैश क्रेडिट एवं ओवरड्राफ्ट दोनों लोन खातों के ही प्रकार हैं इसमें खाताधारक बैंक द्वारा निर्धारित सीमा तक जरुरत पड़ने पर पैसों की निकासी कर सकता है | यही कारण है की बहुत सारे लोगों द्वारा इन दोनों कैश क्रेडिट एवं ओवरड्राफ्ट को लगभग एक जैसा ही समझ लिया जाता है | लेकिन इन सबके बावजूद इनमें कुछ अंतर होते हैं जिनकी लिस्ट निम्नवत है |

  • बैंक या किसी वित्तीय संस्थान द्वारा कैश क्रेडिट फैसिलिटी किसी कंपनी के स्टॉक, देनदार इत्यादि को सुरक्षा के तौर पर रखकर दी जाती है जबकि ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी कंपनी के फिक्स्ड एसेट की सुरक्षा के मद्देनज़र प्रदान की जाती है |
  • कैश क्रेडिट फैसिलिटी कंपनी के स्टॉक एवं बिक्री को ध्यान में रखकर प्रदान की जाती है | एक बैंक किसी कंपनी को उसके स्टॉक का 80% और बिक्री का 20% तक राशि जारी कर सकता है | जबकि ओवरड्राफ्ट में दी जाने वाली अधिकतम राशि का निर्धारण वित्तीय स्टेटमेंट एवं सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया जाता है |
  • कैश क्रेडिट के अंतर्गत मिलने वाली धनराशि को केवल व्यापारिक इस्तेमाल में लाया जा सकता है जबकि ओवरड्राफ्ट के अंतर्गत मिलने वाली धनराशि को किसी भी उद्देश्य में लगाया जा सकता है |
  • कैश क्रेडिट फैसिलिटी लेने वाले खाताधारक को बैंक को वर्ष में या तिमाही में अपनी बैलेंस शीट, टैक्स की जानकारी इत्यादि देनी पड़ती है | जबकि ओवरड्राफ्ट में एक बार स्वीकृत हो जाने पर दुबारा फाइनेंसियल स्टेटमेंट की आवश्यकता नहीं होती है |
  • कैश क्रेडिट समय व्यतीत होने के साथ कम नहीं होता है जबकि ओवरड्राफ्ट में महीने में कमी होती रहती है |
  • कैश क्रेडिट में स्टॉक का बीमा चाहिए होता है जबकि ओवरड्राफ्ट में सम्पति का बीमा चाहिए होता है |
  • कैश क्रेडिट फैसिलिटी लेने के लिए नया खाता खोलना पड़ सकता है जबकि ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी बैंक द्वारा मौजूदा चालू खाते में दी जाती है |
  • आम तौर पर कैश क्रेडिट पर ओवरड्राफ्ट की तुलना में कम एवं ओवरड्राफ्ट पर कैश क्रेडिट की तुलना में अधिक ब्याज लगता है |

कैश क्रेडिट और ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी लेने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

कैश क्रेडिट और ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी लेने से पहले किन किन बातों का ध्यान रखा जा सकता है उनका विवरण कुछ इस प्रकार से है |

  • ध्यान रहे इनमें लगने वाला ब्याज दीर्घकालिक ऋणों से अधिक होता है इसलिए यदि उद्यमी के पास इन खातों में पार्क करने के लिए पैसे नहीं हैं तो उसे दीर्घकालिक ऋणों का सहारा लेना चाहिए |
  • अलग अलग बैंकों द्वारा अलग अलग प्रोसेसिंग शुल्क लिया जाता है जो 0.5% से लेकर 0.75% तक हो सकता है खाताधारक को इसके लिए बैंक से तोल मोल करने की आवश्यकता होती है |
  • कुछ बैंकों द्वारा ब्याज की एक एक न्यूनतम राशि निर्धारित की जाती है जिसे खाताधारक को भरना ही भरना होता है चाहे वह उस फण्ड को इस्तेमाल करे या न करे | अर्थात बैंकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली न्यूनतम राशि निर्धारित की जाती है की कम से कम इतनी राशि तो इस्तेमाल में लानी ही होगी | और यदि खाताधारक इस्तेमाल में नहीं लायेगा तो उसके लिए उसे उस निर्धारित राशि पर ब्याज देना ही होगा | इसलिए इस प्रकार की फैसिलिटी लेने से पहले इनके बारे में पता अवश्य करें |
  • कुछ बैंकों द्वारा खाता बंद करने पर फॉरक्लोजर शुल्क के तौर पर खाताधारक से पैसे लिए जाते हैं | इस प्रकार का यह शुल्क 1 से 2% तक होते हैं | खाताधारक को इस बारे में भी बैंक से मोलभाव करना होगा |
  • कुछ बैंक अपने ग्राहकों को महीने के ब्याज को नकद या चेक के द्वारा अगले महीने के कुछ दिनों के अन्दर भुगतान करने को कहते हैं | ऐसा न करने पर खाताधारक से पेनल्टी के रूप में भी राशि वसूली जा सकती है | यह कितनी होगी वह बैंक बैंक पर निर्भर करता है |

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