प्राइवेट और पब्लिक कंपनी में अन्तर |

प्राइवेट कंपनी तथा पब्लिक कंपनी में अंतर करना बिलकुल भी जटिल प्रक्रिया इसलिए नहीं है, क्योंकि  कंपनी चाहे प्राइवेट लिमिटेड हो या फिर लिमिटेड यानिकी कंपनी चाहे प्राइवेट हो या पब्लिक दोनों की स्थापना भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 (Indian Companies Act 1956) के मुताबिक ही होती है |

यद्यपि समय समय पर यह अधिनियम संसोधित होता रहा है जैसे 2013 में हुए इस अधिनियम में संसोधन को Companies Act 2013 एवं 2015 में हुए संसोधन को Amendment Act 2015 कहा जाता है |

यहाँ पर जो प्राइवेट कंपनी तथा पब्लिक कंपनी में अंतर समझाने की कोशिश की जा रही है वह इन उपर्युक्त सभी संसोधनो को ध्यान में रखकर की जा रही है लेकिन फिर भी पाठक गणों से अनुरोध है की नवीनतम बदलावों को जानने के लिए अपने क़ानूनी सलाहकार या वकील से संपर्क कर सकते हैं |

difference between private and public company in hindi

Difference between Private and Public Company in Hindi:

  • Companies Amendment act 2015 से पहले एक प्राइवेट कंपनी तथा पब्लिक कंपनी में जो सबसे बड़ा अंतर था वह था कम से कम Paid Up Capital का | प्राइवेट कंपनी के लिए न्यूनतम पेड अप कैपिटल एक लाख रूपये एवं पब्लिक कंपनी के लिए पांच लाख रूपये था | जिसे Companies Amendment act 2015 में समाप्त कर दिया गया है |
  • प्राइवेट कंपनी में कम से कम सदस्यों की संख्या 2 एवं अधिक से अधिक सदस्यों की संख्या 50 हो सकती है | जबकि पब्लिक कंपनी में कम से कम सदस्यों की संख्या सात तथा अधिक से अधिक संख्या कितनी भी हो सकती है अर्थात अधिक से अधिक संख्या के लिए कोई सिमित संख्या का निर्धारण नहीं किया गया है |
  • प्राइवेट कंपनी के पास यदि कोई शेयर हों तो इनके हस्तांतरण पर प्रतिबंध अर्थात रोक होती है इसका अभिप्राय यह हुआ की कोई भी प्राइवेट कंपनी अपने शेयर या ऋण पत्रों को बेचने के लिए जनता को आमंत्रित नहीं कर सकती जबकि पब्लिक कंपनी में शेयर का हस्तांतरण आसानी से किया जा सकता है कहने का अभिप्राय यह है की कोई भी पब्लिक कंपनी अपने शेयर या ऋण पत्रों को बेचने के लिए जनता को निमंत्रित कर सकती है |
  • प्राइवेट कंपनी सम्बंधित विभाग से Incorporation Certificate मिलने पर तुरंत अपना व्यवसाय शुरू कर सकती है जबकि पब्लिक कंपनी तब तक काम करना प्रारम्भ नहीं कर सकती जब तक उसे व्यापार को शुरू करने के लिए प्रमाण पत्र नहीं मिल जाय |
  • इसके अलावा प्राइवेट कंपनी सम्बंधित विभाग से Incorporation Certificate मिलने पर तुरंत अपने शेयरों का आंवटन कर सकती है जबकि पुब्लिच्क कंपनी अपने शेयरों का आंवटन उस समय तक नहीं कर सकती जब तक उसे न्यूनतम अभिदान की राशि प्राप्त न हो जाय |
  • प्राइवेट कंपनी तथा पब्लिक कंपनी में अगला अंतर यह है की प्राइवेट कंपनी प्रविवरण या स्थानापन्न प्रविवरण जारी नहीं कर सकती जबकि पब्लिक कंपनी के लिए यह जारी करना अति आवश्यक होता है |
  • प्राइवेट कंपनी के लिए शेयरों द्वारा सिमित कंपनी के नियमों का बनाना आवश्यक होता है जबकि पब्लिक कंपनी के लिए शेयरों द्वारा सिमित अंतर्नियमों का बनाना आवश्यक नहीं होता है |
  • प्राइवेट कंपनी तथा पब्लिक कंपनी में अगला अंतर यह है की प्राइवेट कंपनी के मेमोरेंडम ऑफ़ एसोसिएशन में दो व्यक्तियों के हस्ताक्षर होना अति आवश्यक है जबकि पब्लिक कंपनी के मेमोरेंडम ऑफ़ एसोसिएशन में सात व्यक्तियों के हस्ताक्षर होना अति आवश्यक है |
  • प्राइवेट कंपनी को न तो Statutory Meeting बुलाना आवश्यक है और न ही Statutory Report file करना | जबकि पब्लिक कंपनी में ये दोनों क्रियाएं करना अति आवश्यक है |
  • प्राइवेट कंपनी के नाम के अंत में प्राइवेट लिमिटेड शब्द का उपयोग करना जरुरी है जबकि पब्लिक कंपनी के नाम के अंत में सिर्फ लिमिटेड शब्द का उपयोग होता है |
  • प्राइवेट कंपनी Bearer Share warrant जारी नहीं कर सकती जबकि पब्लिक कंपनी यह कर सकती है |
  • प्राइवेट कंपनी में कम से कम दो संचालक जबकि पब्लिक कंपनी में कम से कम तीन संचालक होने चाहिए |
  • प्राइवेट कंपनी में संचालको का रिटायरमेंट अर्थात अपनी पारी से अवकाश ग्रहण करना आवश्यक नहीं है जबकि पब्लिक कंपनी में एक तिहाई संचालको का ऐसा करना आवश्यक है |
  • प्राइवेट कंपनी में उसके संचालकों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए केन्द्रीय सरकार की अनुमति की जरुरत नहीं है जबकि पब्लिक कंपनी में केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति जरुरी है |
  • प्राइवेट कंपनी तथा पब्लिक कंपनी में अगला अंतर यह है की संचालकों यानिकी डायरेक्टर के पारिश्रमिक से समबन्धित धारा 309 पब्लिक कंपनी पर लागू होती है लेकिन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी पर नहीं होती |
  • पब्लिक कंपनी को अपने संचालकों के सम्बन्ध में विभिन्न दस्तावेज जैसे संचालको का सहमती पत्र, संचालको की सूची, संचालको के साथ किये गए कॉन्ट्रैक्ट इत्यादि रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज को भेजने पड़ सकते हैं जबकि प्राइवेट कंपनी को ऐसा नहीं करना पड़ता |
  • पब्लिक कम्पनी पर धारा 266 के तहत संचालकों की नियुक्ति तथा विज्ञापन समबन्धि व्यवस्थाएं लागू होती हैं जबकि प्राइवेट कंपनी पर यह सब लागू नहीं होता |
  • यदि कोई पब्लिक कंपनी अपने संचालकों की संख्या में वृद्धि करना चाहती है तो उसे केंद्रीय सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है जबकि प्राइवेट कंपनी के लिए यह आवश्यक नहीं है |
  • प्राइवेट कंपनी में संचालको को Qualification Shares लेना आवश्यक नहीं है जबकि पब्लिक कम्पनी में कंपनी के अपने नियमों के अनुसार यह आवश्यक होता है |
  • प्राइवेट कंपनी तथा पब्लिक कंपनी में अगला अंतर यह है की पब्लिक कंपनी पर पूंजी का और अधिक निर्गमन की व्यवस्थाएं लागू होती हैं जबकि प्राइवेट कंपनी पर यह लागू नहीं होती हैं |
  • प्राइवेट कंपनी में एक या फिर दो सदस्य भी मतगणना की मांग कर सकते हैं जबकि पब्लिक कंपनी में कम से कम पांच सदस्य ऐसा कर सकते हैं |

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