बाँसुरी नामक इस सुरीले यंत्र को मुरली भी कहा जाता है । ऐसे में यदि आप इस तरह के यंत्र को बनाने (Flute Making Business) शुरू करना चाहते हैं, तो इस लेख में हम इसकी विस्तृत जानकारी प्रदान करने वाले हैं।
प्राचीनकाल में मुरली यानिकी बांसुरी सबसे प्रचलित सुरीले यंत्रों में से एक थी। और भगवान श्रीकृष्ण को तो बाँसुरी बजाने का इतना शौक था की आज भी लोग उन्हें मुरलीवाले के नाम से भी जानते हैं।
आज भी यदि किसी गाने की धुन में हमें बाँसुरी की मधुर धुन सुनाई देती है तो उस गाने को सुनते रहने को मन करता है। इसलिए ऐसा नहीं है की अब बाँसुरी का इस्तेमाल संगीत और गानों में कम हो गया है, बल्कि इसका इस्तेमाल बीतते समय के साथ बढ़ा ही है।
बाँसुरी की धुन में वो मिठास होती है जो किसी को भी उस धुन की ओर सम्मोहित कर सकती है। प्राचीनकाल में ऐसे लोग जो पालतू जानवरों को जंगल में चराने के लिए चरागाहों पर ले जाते थे। वे शौकिया तौर पर बाँसुरी बजाना पसंद करते थे।
लेकिन आज के युग में बाँसुरी का इस्तेमाल लोग शौकिया तौर पर तो करते ही हैं, इसके अलावा पेशेवर संगीत में भी इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है।
यही कारण है की आज हम हमारे इस लेख के माध्यम से बाँसुरी बनाने के बिजनेस (Flute Making Business) से सम्बंधित सभी जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
बाँसुरी क्या होती है
बाँसुरी शब्द बाँस + सुर दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। जिसमें बाँस का अर्थ उस लकड़ी से है जिससे इसे बनाया जाता है और सुर का अर्थ राग से है। संगीत से जुड़े वाद्य यंत्रों में यह एक बेहद प्राचीन वाद्य यंत्र है।
यह वाद्य यंत्र इतना पुराना है की भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हर लोककथाओं में और उनकी रास लीलाओं में बाँसुरी शब्द बार बार मिलता है।
बाँसुरी को बाँस की लकड़ी में छेद करके और इसके अग्र भाग को थोड़ा सा नुकीला करके किया जाता है, और इसमें उँगलियों से बंद किये जा सकने वाले छिद्र भी बनाये जाते हैं। जिनका इस्तेमाल करके ही किसी सुर या राग के साथ बाँसुरी बजाना संभव हो पाता है ।
लेकिन वर्तमान में सिर्फ बाँस की लकड़ी का इस्तेमाल करके ही नहीं बल्कि कई तरह की धातु कला इस्तेमाल करके भी बाँसुरी बनाये जाने लगी है।
बाँसुरी की बिकने की संभावनाएं
ऐसे प्रोडक्ट्स जिनकी लोगों को आवश्यकता होती है, उनके बिक्री होने की संभावना भी अधिक होती है। यद्यपि बाँसुरी मनुष्य की नितांत आवश्यकताओं में तो शामिल नहीं है। लेकिन दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो शौकिया तौर पर बाँसुरी बजाना पसंद करते हैं ।
और यही नहीं म्यूजिक इंडस्ट्री में तो बाँसुरी की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है। यही कारण है की इस तरह के उत्पाद के लिए एक बहुत बड़ा घरेलु बाज़ार तो उपलब्ध है ही, साथ में इसे बाहरी देशों को भी निर्यात करने के पर्याप्त अवसर विद्यमान हैं।
भारत में बाँसुरी बनाने का बिजनेस कहाँ किया जाता है
भारत में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में बाँसुरी का सबसे अधिक निर्माण किया जाता है। यहाँ पर सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले बाँस से बाँसुरी का निर्माण किया जाता है। सामान्य स्ट्रेट-ब्लो वुडविंड और साइड-ब्लो या क्रॉस ओवर वुडविंड के निर्माण में अधिकतर मुस्लिम कारीगर शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में इस तरह के उत्पाद का उत्पादन करने वाले लोगों को यह व्यवसाय विरासत में मिला हुआ व्यवसाय है । जिसका मतलब यह है की जो लोग आज बाँसुरी बनाने का काम करते हैं उनके पूर्वज दादा परदादा भी इसी व्यवसाय से जुड़े हुए थे।
यहाँ बाँसुरी का निर्माण करने के लिए बाँस असम के सिलचर से मँगाया जाता है। एक विश्वसनीय आंकड़े की मानें तो भारत में उत्पादित होने वाले कुल बाँसुरी के उत्पादन में अकेला पीलीभीत 90% बाँसुरी का उत्पादन करता है।
इस वाद्य यंत्र की माँग विदेशों जैसे अमेरिका सहित अन्य यूरोपीय देशों में भी की जाती है, और इस माँग को भी पीलीभीत द्वारा ही पूरा किया जाता है। पीलीभीत में बाँसुरी का इतना उत्पादन किया जाता है की, यह बाँसुरी नगर के नाम से भी विख्यात है।
बाँसुरी निर्माण के लिए आवश्यक जगह
यदि आप भी खुद का बाँसुरी बनाने का बिजनेस (Flute Making Business) शुरू करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको जमीन और जगह की आवश्यकता तो होगी ही । लेकिन सवाल यह उठता है की इस तरह का यह बिजनेस शुरू करने के लिए उद्यमी को कितनी वर्ग फीट जगह की आवश्यकता होगी।
यद्यपि बाँसुरी बनाने के लिए उद्यमी को बहुत भारी भरकम और महंगी मशीनरी की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन कच्चे माल जिससे बाँसुरी बने जाती है उसे स्टोर करने, कारीगरों के काम करने और एक छोटे से ऑफिस की भी आवश्यकता हो सकती है।
इस तरह से देखें तो उद्यमी को इस तरह का यह बिजनेस अच्छे ढंग से संचालित करने के लिए 1000-1200 वर्गफीट जगह की आवश्यकता हो सकती है ।
उद्यमी चाहे तो किसी सस्ती लोकेशन पर कोई बनी बनाई बिल्डिंग या ढांचा किराये पर लेकर भी इस तरह के बिजनेस को शुरू कर सकता है ।
यदि उद्यमी के पास स्वयं की जमीन है या वह लम्बे समय तक किसी जमीन को सस्ते दामों पर लीज पर ले रहा है तो उसे इस जमीन में कंस्ट्रक्शन कार्य कराने के लिए भी पैसों की आवश्यकता होगी।
जिसमें लगभग 500 वर्गफीट में वर्कशॉप एरिया जहाँ पर मशीनरी सेटअप और बाँसुरी निर्माण करने में इस्तेमाल में लायी जाने वाली सभी प्रक्रियाओं को सुचारू रूप से किया जा सके।
200 वर्गफीट में इन्वेंटरी एरिया जिसमें कच्चे माल को स्टोर करने, उत्पादित माल को स्टोर करने और अन्य हस्तचालित टूल उपकरणों को रखने के लिए कमरों का निर्माण शामिल है।
इसके अलावा लगभग 300 वर्गफीट में ऑफिस का निर्माण किया जा सकता है, जहाँ पर कर्मचारियों की सैलरी से लेकर, वेंडर बिल्स, खर्चे कमाई के सारे रिकॉर्ड रखे जा सकते हैं।
बाँसुरी बिजनेस शुरू करने के लिए लाइसेंस/पंजीकरण
वैसे तो बाँसुरी बनाने का बिजनेस शुरू करने के लिए किसी प्रकार के लाइसेंस और पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन यदि उद्यमी चाहे तो अपने बिजनेस को वैधानिक रूप से शुरू करने के लिए निम्नलिखित लाइसेंस और पंजीकरण प्राप्त कर सकता है।
- अपने बिजनेस को प्रोप्राइटरशिप फर्म के तौर पर रजिस्टर करें।
- व्यवसाय के नाम से पैन कार्ड बनाएँ।
- जीएसटी रजिस्ट्रेशन प्राप्त करें।
- बैंक में व्यवसाय के नाम से चालू खाता खोलें ।
- स्थानीय प्राधिकरण से ट्रेड लाइसेंस प्राप्त करें ।
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बाँसुरी बनाने के लिए कच्चा माल और मशीनरी
जैसा की हम पहले भी बता चुके हैं की बाँसुरी निर्माण बिजनेस में बहुत भारी भरकम और महंगी मशीनरी का इस्तेमाल नहीं होता है । लेकिन फिर भी कुछ छोटी मशीनरी और उपकरणों का इस्तेमाल तो होता ही है।
बाँसुरी बनाने के लिए मशीनरी और उपकरणों से ज्यादा उस कारीगर की जरुरत होती है जिसे बाँसुरी बनाना आता हो। बाँसुरी बनाना एक कला है क्योंकि इसका इस्तेमाल प्राचीनकाल से होता आ रहा है तब तो इतने उन्नत मशीनरी और उपकरण भी नहीं हुआ करते थे।
एक कारीगर को बाँसुरी बनाने के लिए जिस कच्चे माल की आवश्यकता होती है, उसकी लिस्ट कुछ इस प्रकार से है।
- गोल बाँस की लकड़ी
- पेंसिल
- रॉड
- सैंड पेपर
और एक आंकड़े की मानें तो प्रत्येक बाँसुरी को बनाने में लगभग 70-80 रूपये का मटेरियल लग जाता है। मशीनरी और उपकरणों की लिस्ट कुछ इस प्रकार से है।
- क्राफ्ट नाइफ
- चिसेल्स
- पॉवर ड्रिल
कुल मिलाकर देखें तो इस बिजनेस को शुरू करने में इस्तेमाल में लाये जाने वाले मशीनरी और उपकरणों को ₹45000 तक के खर्चे में आसानी से ख़रीदा जा सकता है।
कर्मचारी कितने चाहिए
इस बिजनेस (Flute Making Business) के लिए कितने कर्मचारियों की आवश्यकता होगी वह इस बात पर निर्भर करता है की उद्यमी किस उत्पादन क्षमता की इकाई स्थापित करना चाहता है।
एक ऐसी इकाई जिसमें प्रतिदिन 200 से अधिक बाँसुरी का उत्पादन किया जाता हो उसके लिए निम्नलिखित कर्मचारियों को नियुक्त करने की आवश्यकता हो सकती है।
- कारीगर – 2
- कुशल अकुशल श्रमिक – 2
- हेल्पर – 03
- सेल्समेन – 01
- अकाउंटेंट – 01
इस तरह से देखें तो उद्यमी को कम से कम 9 कर्मचारियों को नियुक्त करने की आवश्यकता हो सकती है।
बाँसुरी कैसे बनाई जाती है (Manufacturing Process of Flute in Hindi)
जैसा की हमने बताया की भारत में उत्तर प्रदेश का पीलीभीत ही एक ऐसा शहर है जहाँ पर बाँसुरी के कुल उत्पादन का लगभग 90% बाँसुरी का उत्पादन किया जाता है ।
वह इसलिए क्योंकि बाँसुरी जैसे वाद्य यंत्र को बनाने की कला हर किसी को नहीं आती है । बल्कि एक विशेषज्ञ और कुशल कारीगर ही इस तरह के यंत्र का निर्माण कर पाने में सफल हो पाते हैं ।
पीलीभीत में उपलब्ध कारीगरों के माता पिता भी इसी व्यवसाय से जुड़े हुए थे इसलिए यह व्यवसाय उन्हें विरासत में मिला हुआ है। यही कारण है की उन्हें बाँसुरी के छेदों में मधुर स्वरों को समाहित करने की कला पूर्ण रूप से आती है ।
ऐसे में यदि आप भी खुद का बाँसुरी बनाने का बिजनेस शुरू करने पर विचार कर रहे हैं, तो सबसे पहले आपको पीलीभीत में जाकर ऐसी किसी इकाई में कार्य करना होगा, जो बाँसुरी का निर्माण करती हों। लेकिन बाँसुरी बनाने के लिए जिन प्रक्रियाओं से गुजरने की आवश्यकता होती है। उनका विवरण निम्नवत है।
बाँसुरी बनाने के लिए एक ऐसा बाँस चाहिए होता है, जिसकी मोटाई बहुत ज्यादा न होकर बाँसुरी की मोटाई के अनुरूप ही हो, औरबाँस अन्दर से खोखला होता है इसकी दूरी मापने के लिए वर्नियर कैलीपर का इस्तेमाल किया जाता है।
वह इसलिए क्योंकि बाँसुरी बनाने के लिए बाँस के खोखलेपन में एक निधारित दूरी होनी चाहिए, उससे ज्यादा या कम दूरी बाँसुरी की आवाज को प्रभावित करती है।
बाँस को आवश्यक लम्बाई में काटना
अब जाब बाँसकी मोटाई और खोखलेपन की दूरी का पता लगाकर बाँसुरी के लिए बाँस का चयन कर लिया जाता है, तो उसके बाद इस प्रक्रिया में अगला कदम बाँस को बाँसुरी के अनुकूल लम्बाई में काटने का होता है। इंच टेप से मापकर कटिंग मशीन की मदद से बाँस को आवश्यकता लम्बाई में कट लिया जाता है।
बाँस की लकड़ी की आंतरिक सफाई
हालांकि बाँस की अधिकतर लकड़ी खोखली होती है लेकिन जहाँ पर गांठे होती है वहाँ पर वह अन्दर से भरी हुई हो सकती है । इसलिए बाँसुरी बनाने की प्रक्रिया में अब बाँस की लकड़ी की आंतरिक सफाई की जाती है। यानिकी आवश्यक साइज़ में कटी गई लकड़ी को पूरी तरह से खोखला किया जाता है। और उसके बाद इसके भीतरी हिस्से को सैंड पेपर की मदद से स्मूथ कर दिया जाता है।
लकड़ी में छिद्र करना
बाँसुरी की आकृति में कटी गई बाँस की लकड़ी में अब छिद्र करने होते हैं, इसके लिए सबसे पहले स्केल और पेन्सिल की मदद से छिद्र कहाँ तक तैयार करने हैं उसकी माप ली जाती है। आम तौर पर एक बाँसुरी बनाने के लिए लगभग सात जगहों पर पेन्सिल से मार्क किया जाता है जहाँ पर छिद्र तैयार करने होते हैं, उसके बाद छिद्र करने के लिए धातु की गरम छड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।
बाँसुरी पर डाट फिट करना
बाँसुरी के अग्रभाग जहाँ पर बाँसुरी होंठों का स्पर्श कर रही होती है वहाँ पर हवा को नियंत्रित करने के लिए एक डाट लगाया जाता है।
बाँसुरी की लम्बाई को एडजस्ट करना
सही और उचित तारत्व प्राप्त करने के लिए बाँसुरी की अतिरिक्त लम्बाई को फिर से काटा जाता है। उसके बाद बाँसुरी की tuning प्रक्रिया को पूर्ण किया जाता है।
FAQ (सवाल/जवाब)
बाँसुरी बनाने का बिजनेस शुरू करने में कितनी लागत आएगी?
लागत कई कारकों पर निर्भर करती है लेकिन एक ऐसी इकाई जिसमें प्रतिदिन 200 से अधिक बाँसुरी का निर्माण होता हो, को शुरू करने में लगभग ₹7.55 लाख निवेश करने की आवश्यकता हो सकती है।
भारत में बाँसुरी का सर्वाधिक निर्माण कहाँ किया जाता है?
भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के पीलीभीत में बाँसुरी का सबसे अधिक निर्माण किया जाता है।
क्या बाँसुरी बनाना एक कला है?
जी हाँ बाँसुरी बनाना एक कला है क्योंकि एक अच्छा कारीगर ही एक अच्छी बाँसुरी का निर्माण कर सकता है।
क्या आज भी म्यूजिक इंडस्ट्री में बाँसुरी का इस्तेमाल किया जाता है।
जी हाँ आधुनिक गीत/संगीतमें भी बाँसुरी का इस्तेमाल देखा जा सकता है।
बाँसुरी बनाने का बिजनेस शुरू करने में खर्चा
बाँसुरी बनाने के बिजनेस को बेहद कम निवेश के साथ भी शुरू किया जा सकता है, लेकिन यदि उद्यमी अपनी इकाई में एक दिन में 200 से अधिक बाँसुरी का निर्माण करना चाहता है तो उसे निम्नलिखित मदों पर खर्चा करने की आवश्यकता हो सकती है।
खर्चे का विवरण | खर्चा रुपयों में |
मशीनरी और उपकरणों का खर्चा | ₹45000 |
तीन महीने बिल्डिंग का किराया | ₹60000 |
फर्नीचर फिक्सिंग और अन्य लागत | ₹2 लाख |
कच्चा माल, सैलरी, एवं अन्य कार्यशील लागत | ₹4.5 लाख |
कुल लागत | ₹7.55 लाख |
जहाँ तक इस बिजनेस (Flute Making Business) से होने वाली कमाई का सवाल है, तो एक साल में इस बिजनेस से ₹2.5 लाख तक का शुद्ध मुनाफा कमाया जा सकता है।
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