खिलौने बनाने का बिजनेस कैसे शुरू करें? Toy Manufacturing Business .

खिलौनों की यदि हम बात करें तो ये बच्चों के बौद्धिक एवं शारीरिक विकास में मदद करते हैं। इसलिए Toy Manufacturing Business पर बात करना बेहद जरुरी हो जाता है। यदि आपके घर में छोटे बच्चे हैं तो हमें आपको खिलौनों की उपयोगिता बताने की आवश्यकता इसलिए नहीं है क्योंकि आप अच्छी तरह जानते हैं की बच्चों को खिलौनों के साथ खेलना कितना पसंद होता है। इसलिए जब भी आज भी कोई व्यक्ति खिलौनों के बारे में सुनता है तो वह अपने बचपन में लौट जाता है।

क्योंकि खिलौने बड़े उम्रदराज लोगों को भी उनका बचपन याद दिला देते हैं। वैसे देखा जाय तो भारत में खिलौनों को अनेकों श्रेणियों जैसे प्लास्टिक खिलौने, सॉफ्ट खिलौने इत्यादि में विभाजित किया जा सकता है। लेकिन वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक एवं बैटरी से चालित प्लास्टिक खिलौनों की मांग अच्छी खासी है। हालांकि Toy Manufacturing करने वाले उद्यमी अन्य तरह के भी खिलौने जैसे कागज़ से निर्मित खिलौने, कपड़े से निर्मित खिलौने, लकड़ी एवं धातु से निर्मित खिलौने भी बनाते हैं । लेकिन लकड़ी एवं धातु से बने खिलौनों को बच्चों को खेलने के लिए देना सुरक्षित नहीं है अर्थात वे इन भारी वस्तुओं से बने खिलौनों से अपने आपको चोटिल कर सकते हैं।

यही कारण है की लोग ऐसे खिलौनों को बच्चों के लिए खरीदना पसंद नहीं करते हैं, और ये अपनी पॉपुलैरिटी धीरे धीरे खोते जा रहे हैं। वर्तमान में एजुकेशनल खिलौने एवं एक्टिविटी खिलौने भी काफी पोपुलर होते जा रहे हैं क्योंकि ये खिलौने बच्चे का बौद्धिक एवं शारीरिक विकास करने में सहायक होते हैं। आज भी भारत में Toy Manufacturing Business आम तौर पर कुटीर उद्योगों द्वारा ही अधिक किया जा रहा है। इनमें विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक एवं सॉफ्ट खिलौनों का निर्माण किया जा रहा है।

जहाँ तक इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों की बात है इनमें रिमोट कण्ट्रोल वाले खिलौने, वाकी टॉकी सेट, म्यूजिकल खिलौने, विडियो गेम खिलौने, एजुकेशनल खिलौने इत्यादि बेहद प्रसिद्ध हैं। वर्तमान में भारत के घरेलु बाजार में ही खिलौनों की बड़ी मांग है इसलिए यहाँ पर इस तरह का यह व्यवसाय शुरू करना काफी लाभकारी हो सकता है।

Toy manufacturing business in Hindi

खिलौने बनाने का व्यापार क्या है (What is Toy Manufacturing Business)

जैसा की हम पहले भी बता चुके हैं की वर्तमान में भारत में भी तरह तरह के खिलौने बच्चों द्वारा बेहद पसंद किये जा रहे हैं। इनमें कुछ खिलौनों का मकसद बच्चों को बहलाना, फुसलाना, खेल खिलाना होता है, क्योंकि माता पिता या बच्चों के अभिभावक चाहते हैं की उनके बच्चे खुश रहें। तो कुछ खिलौनों का मकसद बच्चों को सिर्फ बहलाना नहीं बल्कि खेल खेल में सिखाने का भी होता है यही कारण है की ऐसे खिलौनों को एजुकेशनल टॉय कहते हैं ।

एजुकेशनल टॉय में अधिकतर प्लास्टिक से निर्मित खिलौने होते हैं तो वहीँ बच्चों को बहलाने, खेल खिलाने वाले खिलौनों की श्रेणियों में सॉफ्ट एवं प्लास्टिक से निर्मित दोनों खिलौने होते हैं। जब किसी उद्यमी द्वारा अपनी कमाई करने के उद्देश्य से व्यवसायिक तौर पर इनका निर्माण करके इन्हें बेचा जाता है तो उसके द्वारा किया जाने वाला यह काम ही Toy Manufacturing Business कहलाता है।

खिलौनों की बिक्री संभाव्यता:

भारत में बीते कुछ सालों में मध्यम वर्ग की आबादी में बड़ी वृद्धि देखी गई है इसका कारण निम्न वर्ग की आय में बढोत्तरी के कारण उनके जीवन स्तर में हो रहा सुधार रहा है। और भारत में हमेशा देखा गया है की हर प्रकार की वस्तुओं का मध्यम वर्ग बड़े पैमाने पर ग्राहक रहा है। भारत की शहरी आबादी विश्व में दुसरे नंबर पर सबसे अधिक आबादी है और शहरों में ग्रामीण इलाकों की तरह आउटडोर खेल की संभावना कम होती है यही कारण है की लगभग सभी लोग अपने बच्चों के लिए कुछ न कुछ खिलौने अवश्य खरीदते हैं।

भारत में Toy Manufacturing बहुतायत तौर पर कुटीर उद्योगों यानिकी असंगठित क्षेत्रों द्वारा किया जा रहा है सैकड़ों विनिर्माणकर्ताओं में से कुछ ही विनिर्माणकर्ता अंतराष्ट्रीय स्तर के हैं। भारत में इस क्षेत्र के लिए कुशल कार्यबल, विविध रेंज, इनोवेशन और क्रिएटिविटी, और लोगों का सीखने की ओर ध्यान केन्द्रित होना इत्यादि कुछ ऐसे बिंदु हैं जो इस व्यवसाय के लिए अच्छे अवसर पैदा करते हैं। हालांकि अभी भी कुछ भारतीय विनिर्माणकर्ता बड़ी एवं छोटी हर स्तर की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए तत्पर हैं और वे यहाँ निर्मित खिलौनों को बाहरी देशों की ओर निर्यात भी कर रहे हैं।

लेकिन भारत भी स्वयं में खिलौनों का एक बहुत बड़ा उपभोक्ता है और यहाँ की अधिकतर जनसँख्या अपने बच्चों को खिलौनों से खिलाना, बहलाना पसंद करती है जिससे उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास पूर्ण रूप से हो सके। विकसित देशों में जहाँ प्रति बच्चा खिलौनों की संख्या बहुत अधिक है वहां भारत में आज भी यह विकसित देशों की तुलना में काफी कम है लेकिन यह समय व्यतीत होने के साथ एवं लोगों की आय में हो रही वृद्धि के साथ बड़ी तेजी से बढती जा रही है। इसलिए यहाँ Toy Manufacturing Business शुरू करना काफी लाभकारी साबित हो सकता है।   

खिलौने बनाने का व्यापार कैसे शुरू करें? (How To Start toy Manufacturing Business)

खिलौनों का मकसद बच्चों को बहलाना, मनोरंजित करना या खेल खिलाना होता है इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं की Toy Manufacturing Business शुरू करने के लिए काफी इनोवेशन एवं क्रिएटिविटी की आवश्यकता होती है। यदि आप में भी कुछ नया सोचने की शक्ति एवं रचनात्मकता भरी पडी है तो आप यह खिलौने बनाने का व्यापार शुरू कर सकते हैं।

वैसे देखा जाय तो भारत में खिलौने बनाने वाले कारीगरों की कोई कमी नहीं है लेकिन उन पारम्परिक खिलौनों में कुछ नया जोड़कर उन्हें वर्तमान के अनुकूल बनाने की रचनात्मकता एवं नयापन उद्यमी में अवश्य होना चाहिए। चूँकि भारत में खिलौने बनाने का काम अधिकतर असंगठित क्षेत्रों द्वारा किया जाता है इसलिए उद्यमी के पास स्वयं का ब्रांड स्थापित करके उसे इस क्षेत्र में एक नई पहचान देने का भी अवसर विद्यमान है। तो आइये जानते हैं की कैसे कोई व्यक्ति खुद का Toy Manufacturing Business शुरू कर सकता है।

1. लोकल रिसर्च करें

लोकल रिसर्च से हमारा आशय स्थानीय स्तर पर रिसर्च से है इसमें Toy Manufacturing Business कर रहे उद्यमी को स्थानीय स्तर पर विभिन्न बातों एवं आंकड़ों की जानकारी जुटानी होती है। जिसके बाद वह इस बात का निर्णय ले पाने में सक्षम हो पायेगा की वह उस व्यवसाय विशेष में आगे बढे या फिर नहीं। उद्यमी को उस एरिया विशेष में बिकने वाले खिलौनों की श्रेणी के बारे में पता करना होगा अर्थात उद्यमी को पता करना होगा की वहां पर इलेक्ट्रॉनिक खिलौने अधिक बिक रहे हैं या फिर सॉफ्ट खिलौने।

इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों की अपनी उपश्रेणियाँ हैं इनमें म्यूजिकल, एजुकेशनल इत्यादि शामिल हैं। इसके अलावा क्या उस एरिया में पहले से कोई उद्यमी इस तरह का व्यवसाय कर रहा है? क्या उद्यमी को उस एरिया में खिलौने बनाने के लिए कारीगर एवं कुशल श्रमिक उचित दरों पर मिल पाएंगे? क्या कच्चा माल उपलब्ध दरों पर उपलब्ध हो पायेगा? ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर उद्यमी को अपनी लोकल रिसर्च के माध्यम से ढूँढने की आवश्यकता होती है। और फिर इनका सही से मूल्यांकन करके इस निर्णय पर पहुँचना होता है की क्या Toy Manufacturing व्यापार शुरू करना उसके लिए सही होगा।      

2. खिलौने की श्रेणी का चयन करें (Select Toy Category )

जैसा की हम बता चुके हैं वर्तमान में जो सबसे प्रसिद्ध श्रेणी खिलौनों की है उनमें प्लास्टिक एवं सॉफ्ट खिलौने प्रमुख हैं। और इनकी कई उपश्रेणियाँ हैं इसलिए उद्यमी को अब यह तय करना होगा की वह खिलौनों की कौन सी श्रेणी का उत्पादन करना चाहता है ।

वैसे Toy Manufacturing Business शुरू करने का इच्छुक व्यक्ति चाहे तो स्थानीय रिसर्च में जो स्थानीय लोगों की पसंद सामने आई हो उसी के मुताबिक श्रेणी का चयन कर सकता है। क्योंकि शुरूआती दौर में उद्यमी को अपने खिलौने उसी शहर या और कुछ नज़दीकी शहरों में बेचने की आवश्यकता होगी और उद्यमी के पास अपने उत्पाद को एक राज्य से दुसरे राज्य में बेचने के लिए शायद बजट की कमी हो सकती है।   

3. जगह एवं कारीगरों का प्रबंध करें (Manpower for Toy Manufacturing Business)

जैसा की हमने बताया है की Toy Manufacturing Business के लिए इनोवेशन एवं क्रिएटिविटी बेहद जरुरी है और वैसे देखा जाय तो भारत में खिलौने बनाने वाले कुशल श्रमिकों की कोई कमी नहीं है। लेकिन उद्यमी भले ही कितना इनोवेटिव एवं क्रिएटिव क्यों न हो लेकिन उसे खिलौने बनाने के लिए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती ही होती है । और यदि श्रमिक पहले से ही अनुभवी हों तो और भी अच्छा है लेकिन यदि संभी श्रमिक अनुभवी न भी हों, तो उद्यमी को कम से कम एक दो अनुभवी श्रमिक अवश्य नियुक्त करने चाहिए।

उद्यमी को प्रमुख तौर पर डिजाईन इंजिनियर, प्रोडक्शन मेनेजर, कुशल श्रमिक, अकुशल श्रमिक, चपरासी, सेल्स एग्जीक्यूटिव इत्यादि नियुक्त करने की आवश्यकता हो सकती है। और जहाँ तक Toy Manufacturing Business के लिए जगह का सवाल है वह तो इस बात पर निर्भर करता है की उद्यमी इसे किस स्तर पर शुरू करना चाहता है। लेकिन एक औसतन फैक्ट्री के लिए 400 Square Meter जगह उपयुक्त रहेगी।     

4. आवश्यक लाइसेंस एवं पंजीकरण प्राप्त करें

हालांकि भारत में अधिकतर खिलौनों का निर्माण असंगठित क्षेत्रों द्वारा किया जा रहा है लेकिन यदि उद्यमी स्वयं का ब्रांड स्थापित करके Toy Manufacturing Business शुरू करने की योजना बना रहा है। तो उसे अपने व्यवसाय को रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज में रजिस्टर कराना होगा, फैक्ट्री एक्ट के तहत फैक्ट्री लाइसेंस की भी आवश्यकता होगी। स्थानीय प्राधिकरण जैसे नगर निगम, नगर पालिका इत्यादि से भी ट्रेड लाइसेंस लेने की आवश्यकता हो सकती है।

हालांकि जीएसटी पंजीकरण एक निश्चित टर्नओवर की सीमा पार करने के बाद ही अनिवार्य होता है लेकिन यदि उद्यमी खुद का ब्रांड स्थापित करने की सोच रहा है तो उसे जीएसटी रजिस्ट्रेशन भी पहले ही करा लेना चाहिए। बिजली पानी का कमर्शियल कनेक्शन के अलावा उद्योग आधार रजिस्ट्रेशन की भी आवश्यकता हो सकती है।       

5. मशीनरी एवं कच्चा माल खरीदें

मशीनरी एवं कच्चा माल भी खिलौनों की श्रेणियों के आधार पर अलग अलग हो सकता है अर्थात यदि Toy Manufacturing Business करने वाले उद्यमी की योजना इलेक्ट्रॉनिक खिलौने बनाने की है। तो उसे निम्नलिखित मशीनरी एवं उपकरणों की आवश्यकता हो सकती है।

  • डिजिटल मल्टीमीटर
  • टेम्प कण्ट्रोल सोल्डरिंग यूनिट
  • एलसीआर मीटर
  • ड्रिलिंग मशीन
  • एनालॉग मीटर
  • टूल किट
  • इलेक्ट्रिक स्क्रू ड्राईवर और स्क्रू फीडर
  • कंबाइंड सोल्डरिंग डी सोल्डरिंग स्टेशन
  • हाई स्पीड मिनी ड्रिल सेट
  • कंप्यूटर और यूपीएस

इलेक्ट्रॉनिक खिलौने बनाने के लिए कच्चा माल

  • प्लास्टिक या फाइबर की बॉडी चैसिस
  • टॉय कार मोटर कंट्रोलर
  • फ्रंट और बैक ब्रशलेस मोटर
  • लिथियम बैटरी
  • लिथियम पॉलीमर बैटरी चार्जर
  • धातु से बने माइक्रो गियर
  • रिमोट कण्ट्रोल यूनिट
  • तार, केबल, कनेक्टर, मेचेनिकल पार्ट, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट, पैकेजिंग सामग्री

सॉफ्ट खिलौने बनाने के लिए आवश्यक मशीनरी एवं कच्चा माल  

सॉफ्ट खिलौने बनाने के लिए आवश्यक मशीनरी, उपकरणों एवं कच्चे माल की लिस्ट निम्नवत है।

  • तीन चार सिलाई मशीन
  • कैंची, टेप, सुई इत्यादि
  • रैक
  • अन्य उपकरण
  • पैकिंग मशीन
  • फर कपड़ा
  • भराई वाली सामग्री
  • आँखे, रिबन, धागा इत्यादि
  • पैकिंग सामग्री

Toy Manufacturing Business करने वाला उद्यमी अपनी योजनानुसार किसी भी श्रेणी के खिलौनों का निर्माण कर सकता है। वैसे देखा जाय तो इस तरह की मशीनरी एवं कच्चा माल किसी भी प्रसिद्ध बाजार से आसानी से ख़रीदा जा सकता है। और वर्तमान में विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफोर्म भी उपलब्ध हैं जिनकी मदद से उद्यमी किसी भी तरह के व्यवसाय को शुरू करने में प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल एवं मशीनरी के सप्लायर को आसानी से ढूंढ सकता है। इसलिए उद्यमी चाहे तो इंडियामार्ट, ट्रेडइंडिया जैसी वेबसाइट के माध्यम से भी सप्लायर ढूंढ सकता है। लेकिन ऑनलाइन डीलिंग में सतर्कता बेहद जरुरी है ताकि किसी भी प्रकार के धोखे से बचा जा सके।    

निर्माण कार्य शुरू करें ( Start Toy Manufacturing Process)  

अब यदि उद्यमी ने सभी कार्य सफलतापूर्वक कर लिए हों तो अब उसका अगला कदम Toy Manufacturing की प्रक्रिया को शुरू करने का होना चाहिए। वैसे देखा जाय तो अलग अलग श्रेणियों के खिलौनों की निर्माण प्रक्रिया अलग अलग होती है। लेकिन जहाँ तक इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों की निर्माण प्रक्रिया का सवाल है इसकी कुछ अहम् कड़ियाँ इस प्रकार से हैं।

ट्रांसमीटर: ट्रांसमीटर का काम रेडियो की तरंगों को रिसीवर तक पहुंचाना होता है।

रिसीवर : यह खिलौने का वह हिस्सा होता है जो खिलौने के अन्दर एक एंटेना या सर्किट बोर्ड के तौर पर लगा होता है और इसका काम ट्रांसमीटर द्वारा भेजे गए संकेतों को प्राप्त करना और कमांड के अनुसार खिलौने के अंदर लगी मोटर को सक्रीय करने का होता है।

मोटर: इसका काम रिसीवर द्वारा प्राप्त किये गए संकेतों के अनुरूप विशिष्ट कार्यवाही करने का होता है। एक कार वाले खिलौने में मोटर पहियों को चालू करने, वाहन चलाने, प्रोपेलर को चलाने इत्यादि में मदद करती है।

पॉवर स्रोत: मोटर को चालू होने के लिए पॉवर की आवश्यकता होगी इसलिए Toy Manufacturing प्रक्रिया में पॉवर स्रोत से आशय उस रिचार्जेबल बैटरी पैक से है जिससे मोटर को पॉवर मिलती है। कभी कभी यह रिचार्जेबल न होकर सामान्य बैटरी भी हो सकती है। इन सबके अलावा एक इलेक्ट्रॉनिक खिलौने को सुचारू रूप से बनाने में इलेक्ट्रॉनिक सर्किट, इलेक्ट्रो मैकेनिकल हार्डवेयर पार्ट्स की असेंबली का भी इस्तेमाल प्रमुखता से किया जाता है।

सॉफ्ट खिलौनों की निर्माण प्रक्रिया (Soft Toy Manufacturing Process)

सॉफ्ट खिलौनों की निर्माण प्रक्रिया बेहद ही आसान एवं सरल है इसलिए Soft Toy Manufacturing Business महिलाओं के अनुकूल है। वह भी खास तौर पर वे महिलाएं जो पहले से सिलाई का काम जानती हों महिलाएं चाहें तो इस बिजनेस को कुटीर उद्योग के तौर पर 20 से 50 हज़ार रुपयों के साथ आसानी से शुरू कर सकती हैं। सॉफ्ट खिलौने बनाने का काम कटाई, सिलाई एवं बुनाई पर ही आधारित  है ।

इसमें सबसे पहले खिलौने की डिजाईन तैयार की जाती है और उसके बाद फर कपड़े को खिलौने की डिजाईन के अनुसार काट लिया जाता है और फिर इसमें भराई सामग्री जैसे स्पंज इत्यादि को भर दिया जाता है। और फिर Soft Toy Manufacturing की इस प्रक्रिया में सुई एवं धागों की मदद से खिलौनों पर आंख, नाक, मुहँ इत्यादि बनाये जाते हैं यह सामग्री बाजार में आसानी से मिल जाती है।

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