बैलेंस शीट क्या है? इसके घटक, फायदे और इसे कैसे बनाएँ।

यदि आप बिजनेस कर रहे हैं तो आप Balance Sheet से अच्छी तरह से अवगत होंगे। लेकिन यदि आप भविष्य में बिजनेस करने पर विचार कर रहे होंगे, तो आपने बैलेंस शीट नामक शब्द कई बार सुना होगा। ऐसे में आपके मन में बार बार इसके बारे में जानने की इच्छा जाग्रत होती होगी। वैसे देखा जाय तो यह किसी कंपनी या संस्थान की एक निश्चित अवधि के लिए उसकी वित्तीय स्थिति को स्पष्ट करती है।

इसकी गणना तिमाही, छमाही या फिर वार्षिक तौर पर की जा सकती है। Balance Sheet के दो मुख्य अवयव कंपनी की संपति और कंपनी पर देनदारियाँ होती हैं। जिन्हें अंग्रेजी में Asset एवं लायबिलिटीज कहते हैं। इन्हें हम इसी लेख में बाद में समझेंगे, लेकिन उससे पहले बैलेंस शीट की परिभाषा क्या हो सकती है उसके बारे में जानने का प्रयत्न कर लेते हैं।

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बैलेंस शीट क्या होती है (What is a Balance Sheet)

अब तक की बातों से तो यही लगता है की बैलेंस शीट  किसी कंपनी का वित्तीय विवरण होता है। जिसमें एक निश्चित समय में कंपनी की कुल सम्पति, देनदारियाँ, इक्विटी पूँजी और कुल ऋण शामिल होते हैं। आम तौर पर देखा जाय तो एक बैलेंस शीट में कंपनी की वित्तीय स्थिति का पता लगाने के लिए उसे दो भागों कंपनी की कुल सम्पति और उस पर मौजूद देनदारियों में विभाजित किया जा सकता है। कंपनी की बैलेंस शीट से ही पता लगता है की कंपनी की वित्तीय स्थिति वास्तव में ठीक है या नहीं।

यदि कंपनी की कुल सम्पति से कंपनी पर कर्जा अधिक है तो इसका सीधा सा मतलब यह है की कंपनी की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है, और कंपनी कर्ज में डूबी हुई है। जबकि इसके उलट परिणाम आने पर अंदाजा लगाया जा सकता है की कंपनी की वित्तीय स्थिति अच्छी है।

कहने का आशय यह है की एक Balance Sheet जब भी तैयार की जाती है, वह उस दिन तक उस कंपनी या संस्थान की संपति कितनी है और उस पर उस दिन तक कितनी देनदारियाँ हैं का आकलन करती है। इसके भले ही प्रमुख दो घटक कुल सम्पति और देनदारियाँ हों, लेकिन इसका एक और घटक नेट वर्थ होता है।

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Sample Balance Sheet
Image: Sample Balance Sheet

बैलेंस शीट के घटक (Components of Balance Sheet):

बैलेंस शीट को व्यवसाय की वित्तीय स्थिति का एक मापक भी कह सकते हैं। यह तब तक अधूरी रहती है जब तक कोई कंपनी इसमें नेट वर्थ को नहीं जोड़ती है। कंपनी की सम्पतियों में से जब देनदारियों को घटा दिया जाता है, तो नेट वर्थ प्राप्त होती है।

संपति (Asset):

कंपनी की एसेट या संपति की हम बात करें तो यह एक आर्थिक मूल्य वाला संसाधन होता है। जिसे कंपनी द्वारा इस उम्मीद को लेकर ख़रीदा जाता है या रखा जाता है की वह एसेट उसके व्यवसाय को भविष्य में लाभ प्राप्त करने में मदद करेगा।

उदाहरण के लिए – एक कंपनी एक फोर्कलिफ्ट खरीदती है वह इसलिए क्योंकि वह चाहती है की जिस उत्पाद का निर्माण वह कंपनी कर रही है। उसे वह फोर्कलिफ्ट की मदद से एक स्थान से दुसरे स्थान में आसानी से स्थानांतरित कर पाएगी। और फोर्कलिफ्ट की कीमत को भी उत्पादित उत्पाद या प्रोडक्ट के बिक्री मूल्य में जोड़ा जाएगा। अब जैसे ही प्रोडक्ट बिकेगा तो फोर्कलिफ्ट भी कंपनी के लिए वित्त लाने में मददगार साबित होगी। आम तौर पर व्यवसायिक सम्पतियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

चल सम्पति (Current Asset):

सम्पति की तरलता ही इस बात को निर्धारित करने में सहायक होती है की वह एसेट कौन सी श्रेणी के तहत आएगा। लिक्विडिटी यानिकी तरलता के माध्यम से किसी संपति को आसानी से नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है। चल सम्पति से आशय कंपनी की ऐसी सम्पतियों से लगाया जाता है, जो इसे बनाने के 12 महीनों के भीतर नकदी में बदल जाएँगी।

हाँ इसमें कोइ दो राय नहीं की सबसे बढ़िया चल सम्पति वह है जो कंपनी के पास बैलेंस शीट  बनाते समय नकदी मौजूद है। लेकिन आपने देखा होगा कई कंपनियों में वेंडर चालान पर सामान की डिलीवरी देते हैं, और उनके ग्राहक उन्हें महीने या तीन महीने में भुगतान करते हैं। AMC, Premium इत्यादि का पैसा साल साल भर में भी आता है। इसलिए इस पैसे को भी बैलेंस शीट में नकदी के तौर पर ही दिखाया जाता है।

एक व्यवसाय द्वारा बेचने के लिए या किसी चीज का निर्माण करने के लिए जो इन्वेंटरी रखी जाती है वह भी करंट एसेट में ही आती है। क्योंकि ऐसी उम्मीद लगे जाती है की यह इन्वेंटरी भी एक साल के भीतर भीतर नकदी में परिवर्तित हो जाएगी।

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अचल संपति (Non Current Asset):

नॉन करंट एसेट यानिकी अचल संपति वे संपतियां हैं जिन्हें 12 महीनों के भीतर नकदी में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। ऐसी सम्पतियों का इस्तेमाल आम तौर पर व्यवसाय को संचालित करने में किया जाता है, फोर्कलिफ्ट या अन्य कोई मशीनरी इसी का उदाहरण है। अचल सम्पतियों में मशीनरी, उपकरण, फर्नीचर, फिक्सचर इत्यादि शामिल हैं।

देनदारियाँ (Liabilities):

व्यवसाय को संचालित करने के लिए कंपनी को कई सप्लायर और वेंडर से अनुबंध करने होते हैं, जो कंपनी में कच्चे माल, स्टेशनरी, हाउसकीपिंग मटेरियल, कर्मचारियों के लिए खाना, पीने का पानी, चाय कॉफ़ी का सामान या कोई अन्य सामग्री आर्डर पर डिलीवर करते हैं। लेकिन कंपनी यह सारा सामान चालान पर लेती है, और इनका भुगतान महीने, तीन महीने, छह महीने में करती है।

देनदारियों से मतलब ऐसी देनदारियों से होता है जिनका भुगतान कंपनी ने 12 महीनों के अन्दर करना होता है। इसमें वेंडर के बिल, लोन की किस्तें, किराया इत्यादि सभी खर्चे शामिल होते हैं, जिनका भुगतान आने वाले समय में कंपनी को करना होता है। देनदारियों को भी करंट और दीर्घकालीक में विभाजित किया जा सकता है ।

नेट वर्थ (Net Worth):

किसी कंपनी या व्यक्ति के स्वामित्व वाली सम्पति के कुल मूल्य से उसकी देनदारियाँ घटा देने पर जो आंकड़ा प्राप्त होता है वही नेट वर्थ कहलाता है। यदि आप किसी कंपनी की वित्तीय स्थिति या स्वास्थ्य के बारे में जानने के इच्छुक हैं तो आपको उस कंपनी की बैलेंस शीट में उसकी नेट वर्थ देखनी चाहिए। क्योंकि या कंपनी की वित्तीय स्थिति का आकलन करने का एक महत्वपूर्ण मीट्रिक है।

बैलेंस शीट के फायदे (Benefits of a Balance Sheet)

इसके एक नहीं बल्कि कई फायदे होते हैं, यही कारण है की हर व्यवसाय को एक निर्धारित समय के अन्तराल में इसे तैयार करना होता है। यहाँ पर इसके कुछ प्रमुख फायदों की लिस्ट दी जा रही है।

वित्तीय स्थिति की जानने में मददगार होती है   

किसी व्यवसाय की बैलेंस शीट में सम्पति, पूँजी और देनदारियों की जानकारी निहित होती है। यह जानकारी उस कंपनी की वित्तीय स्थिति के बारे में पता लगाने में मददगार होती है। कहने का आशय यह है की व्यवसाय की वर्तमान वित्तीय स्थिति को सम्पति और देनदारियों के डेटा के माध्यम से आसानी से पता किया जा सकता है।

वित्तीय अनुपातों की गणना में सहायक होती है  

इस शीट  में उपलब्ध विभिन्न प्रकार का डाटा और जानकारी तरलता अनुपात, चालू अनुपात और एसिड-परीक्षण अनुपात इत्यादि जैसे कई वित्तीय अनुपातों की गणना में सहायक होता है।और इस तरह के इन वित्तीय अनुपातों की मदद से कंपनी की लाभप्रदता, तरलता और स्थिरता का मापन आसानी से किया जा सकता है।

ऋण चुकाने की क्षमता का खुलासा करता है

चूँकि यह  एक विशेष अवधि जैसे तीन महीने, छह महीने, एक वर्ष इत्यादि के लिए कंपनी की सम्पति और उस पर मौजूद देनदारियों की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है । इससे यह आसानी से समझा जा सकता है की व्यवसाय ऋण चुकाने में सक्षम है या नहीं।

ऋण लेने में सहायक होता है

बैलेंस शीट किसी भी व्यवसाय या कंपनी की वित्तीय स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है। यह कंपनी की ऋण चुकाने की क्षमता और नेट वर्थ की भी जानकारी प्रदान करती है। यही कारण है की इस में उपलब्ध जानकारी को बैंक या वित्तीय कंपनियाँ व्यवसायों को ऋण मंजूर करने के इस्तेमाल में भी लाती हैं।

लेनदारों और देनदारों की जानकारी प्रदान करती है

व्यवसायिक वित्तीय लेखों में बैलेंस शीट एक अहम् भूमिका निभाती है। क्योंकि यह व्यवसाय के फाइनेंसियल पहलुओं को प्रदान करती है। एक निश्चित अवधि में व्यवसाय ने किस किस को देना है और किस किस से लेना है इसकी पूरी जानकारी यह प्रदान करती है।

व्यापार स्वामियों की इक्विटी का पता लगाने में मददगार है

इस वित्तीय उपकरण का एक प्रमुख लाभ यह भी है की इसके माध्यम से व्यवसाय के मालिकों की इक्विटी और उनकी पूँजी का पता लगाया जा सकता है।

निर्णय लेने में मदद करता है

इसे एक वित्तीय उपकरण के रूप में इस्तेमाल लाया जा सकता है इसके माध्यम से कंपनी की वर्तमान वित्तीय स्थिति की तुलना उसके पिछले वर्ष की वित्तीय स्थिति से की जा सकती है। इससे यह पता लगाया जा सकता है की पिछली अवधि की तुलना में कंपनी या व्यवसाय ने प्रगति की है या नहीं। और उसी हिसाब से उद्यमी भविष्य की योजनाओं और निर्णयों में सुधार कर सकता है।

बैलेंस शीट कैसे बनाएँ (How to create a Balance Sheet)

अधिकतर बिजनेस इकाइयाँ वित्तीय निर्णयों को लेने के लिए बैलेंस शीट का इस्तेमाल करती हैं। चूँकि एक बिजनेस इकाई का प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाने का ही होता है, इसलिए हर कोई बिजनेस का स्वामी चाहता है की उसके पास एक ऐसी रिपोर्ट हो जिससे वह आसानी से अपनी सम्पति, देनदारियों और इक्विटी का पता लगा सके। तो आइये जानते हैं की इस तरह की यह रिपोर्ट कैसे तैयार की जा सकती है।

एक एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर खरीदें

यदि आप चाहते हैं की आपके प्रतिनिधि या फिर आप अपने बिजनेस का सिर्फ डाटा प्रविष्ट करें और आपके सामने बैलेंस शीट तैयार होकर आ जाय, तो आपको किसी एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर को खरीदना होगा। वर्तमान में एक नहीं बल्कि कई तरह के एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर विभिन्न कंपनियों द्वारा इस्तेमाल में लाये जा रहे हैं । इन्हीं में से एक एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर का नाम टैली है, जिसमें आपको डाटा प्रविष्ट करके बैलेंस शीट देखने की सुविधा मिल जाती है ।

सिर्फ यही नहीं इसके अलावा भी ने कई एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर हैं जिनमें सिर्फ डाटा प्रविष्ट करने से बैलेंस शीट तैयार हो जाती है, आप इनमे से कोई एक सॉफ्टवेयर अपने बिजनेस के लिए खरीद सकते हैं।

शीर्षक लिखें

एक बैलेंस शीट बनाने के लिए सबसे पहला स्टेप उस शीट का शीर्षक लिखना है, इस शीर्षक में आप चाहें तो अपनी कंपनी के नाम के साथ आगे बैलेंस शीट लिख सकते हैं। जैसे एबीसी यदि कोई कंपनी है तो शीर्षक या हैडिंग में एबीसी बैलेंस शीट और वित्तीय वर्ष समाप्ति की तारीख या फिर जिस क्वार्टर के लिए शीट बनानी है उसका विवरण लिखा जा सकता है ।

हर सेक्शन को अलग करने के लिए एकाउंटिंग समीकरणों का उपयोग करें

बैलेंस शीट के मुख्य तौर पर पांच भगा जिनमें व्यक्तिगत संपत्ति, कुल संपत्ति, देनदारियां, मालिक की इक्विटी, कुल देनदारियां शामिल हैं होती हैं। इसलिए एक बैलेंस शीट में इन पाँचों का होना नितांत आवश्यक है। यही नहीं कोई भी प्रासंगिक जानकारी इस शीट में छूट न जाए इसके लिए इसकी संरचना करना बहुत महत्वपूर्ण है।

आम तौर पर एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर में एकाउंटिंग समीकरण पहले फीड होते हैं। लेकिन यदि आप किसी स्प्रेड शीट में इसे बना रहे हैं, तो स्प्रेड शीट के फार्मूलों का इस्तेमाल करके एकाउंटिंग समीकरणों को जोड़ा जाना अति आवश्यक है।

बैलेंस शीट में सम्पतियों को शामिल करें

सबसे पहले आपको अपनी वर्तमान सम्पतियों जिनमें कैश, विपणन योग्य प्रतिभूतियां, विपणन योग्य इन्वेंटरी इत्यादि शामिल होती है की एक लिस्ट तैयार करनी होगी। उसके बाद एक अलग हैडिंग के अन्दर आपको नॉन करेंट एसेट जैसे प्रॉपर्टी, मशीनरी, नॉन मार्किट सिक्योरिटीज और प्रतिभूतियां एवं अन्य बौद्धिक संपदाओं को शामिल कर सकते हैं।

इसके बाद जब आप अपनी सभी प्रकार की संपत्तियों को सूचीबद्ध कर देते हैं, तो इनको आधार मानकर कुल सम्पति की गणना आसानी से की जा सकती है ।

ध्यान रहे की आपकी कुल सम्पति निम्न समीकरण को सही करती हुई होनी चाहिए।

कुल सम्पति = करंट एसेट + नॉनकरंट एसेट + इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी

लायबिलिटीज के लिए अलग सेक्शन बनाएँ  

जिस प्रकार कुल सम्पतियों को बैलेंस शीट में सूचीबद्ध किया जाता है ठीक इसी प्रकार कुल देनदारियों को भी बैलेंस शीट में दिखाया जाता है। इस सेक्शन में करंट और नॉन करंट दोनों तरह की लायबिलिटीज को सूचीबद्ध किया जाता है। जब आप यह कर लेते हैं तो उनके आगे उनकी वैल्यू भी रखनी होती है, ताकि देनदारियों का पता चल सके ।

कुल देनदारियाँ = करंट लायबिलिटीज + नॉनकरंट लायबिलिटीज

बिजनेस के स्वामी की इक्विटी को लिस्ट करें  

सभी प्रकार के देनदारियों के बाद इसमें निवेशकों, शेयरधारकों की देनदारियाँ भी शामिल है उसके भुगतान के बाद जो सम्पति बच जाती है उसे उस बिजनेस के स्वामी की इक्विटी में लिस्ट किया जाता है। वैसे साधारण भाषा में इसे आप बिजनेस के स्वामी का मुनाफा भी कह सकते हैं, इसके लिए निम्न समीकरण का इस्तेमाल किया जाता है।

बिजनेस के स्वामी मी इक्विटी = कुल सम्पति – कुल देनदारियाँ

कुल देनदारियों को स्वामी की इक्विटी के साथ जोड़ें

बैलेंस शीट में इसे करने की ज्यादा जरुरत नहीं होती, लेकिन इस बात को वेरीफाई करने के लिए की आपकी या रिपोर्ट सही है या नहीं इसके लिए इसे करने की आवश्यकता होती है । इसमें बिजनेस के स्वामी की इक्विटी के साथ कुल देनदारियों को जोड़ना होता है।

और यह पूर्व में प्राप्त कुल सम्पति के बराबर होता है, यदि या कुल सम्पति के बराबर नहीं हुआ तो इसका मतलब कहीं न कहीं पर कुछ कैलकुलेशन मिस्टेक हो सकती है। इस तरह से आप देखें तो यह शीट (Balance Sheet) तैयार हो जाती है।   

FAQ (सवाल/जवाब)

बैलेंस शीट के पांच जरुरी भाग कौन कौन से हैं?

व्यक्तिगत संपत्ति, कुल संपत्ति, देनदारियां, मालिक की इक्विटी, कुल देनदारियां प्रमुख भाग हैं।

क्या बैलेंस शीट बनाने के लिए एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर जरुरी है?

नहीं आप किसी स्प्रेडशीट में भी इसे बना सकते हैं।  

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