Company शब्द की उत्पति लेटिन भाषा के एक शब्द Companies से हुई थी Companies शब्द की यदि हम बात करें तो यह दो शब्द Com और Panies से मिलकर बना हुआ है इसमें प्रथम शब्द Com का अर्थ साथ साथ तथा Panies का अर्थ रोटी से लगाया जाता है | इस तरह से यदि हम लेटिन भाषा के अनुसार Companies का अर्थ निकालेंगे तो इसका मूल अर्थ साथ साथ भोजन करने से लगाया जा सकता है
| कंपनी शब्द की उत्पति के शुरूआती दिनों की यदि हम बात करें तो कंपनी शब्द का उच्चारण व्यक्तियों के उस समूह के लिए किया जाता था जो एक साथ बैठकर भोजन किया करते थे और उस वक्त भोजन करते समय समूह के लोगों के बीच व्यवसाय अर्थात बिज़नेस या काम काज की भी बातें हुआ करती थी, वहीँ से इस कंपनी नामक शब्द की उत्पति हुई थी |
लेकिन वर्तमान में कंपनी का अर्थ एक ऐसे संगठन से लगाया जाता है जिसमे संयुक्त रूप से पूँजी विद्यमान होती है, अर्थात कुछ व्यक्तियों द्वारा संयुक्त रूप से पूंजी को समायोजित कर एक संगठन का निर्माण किया जाता है |
कंपनी का अर्थ और परिभाषा (Definition & meaning of company in Hindi) :
सामान्यतया व्यवहारिक जीवन में कंपनी का अर्थ व्यवसायिक उद्देश्य के लिए निर्मित बहुत सारे व्यक्तियों के एक संगठन से लगाया जाता है | कंपनी में संगठन के सदस्यों की संख्या अधिक होती है इसलिए इसे एक फर्म या साझेदारी नहीं कहा जा सकता है, कंपनी का प्रत्येक सदस्य अन्य सदस्यों की सहमती के बिना अपने हितों को हस्तांतरित कर सकता है | वर्तमान में देश भर में अधिकतर कंपनियां भारतीय कंपनी अधिनियम 1913 तथा 1956 के अधीन स्थापित कम्पनियाँ हैं |
भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 के अनुसार “कंपनी का आशय ऐसी कंपनी से है जो धारा 3 में परिभाषित की गई है” इसके अलावा विभिन्न न्यायधीशों द्वारा भी कंपनी की परिभाषा दी गई है | सारे न्यायधीशों एवं विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं का विश्लेषण करके यही बात सामने आती है की कंपनी वैधानिक रूप से निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति के तौर पर कार्य करती है, जिसका अस्तित्व अलग होता है अर्थात किसी व्यक्ति के कंपनी छोड़ जाने या Compnay से अलग हो जाने पर कंपनी का अस्तित्व पहले जैसा ही बना होता है |
कंपनी की विशेषताएं (Characteristics of a company in Hindi:)
कम्पनी की कुछ आधारभूत विशेषताएं निम्नलिखित हैं |
1. अलग क़ानूनी अस्तित्व (Separate Legal Entity):
चूँकि कंपनी का निर्माण कानून द्वारा होता है इसलिए कम्पनी का क़ानूनी अस्तित्व अपने सदस्यों से अलग होता है । यही कारण है की कम्पनी अपने किसी भी सदस्य के साथ किसी भी प्रकार का अनुबन्ध अर्थात Agreements कर सकती है, या कंपनी का कोई भी सदस्य कंपनी के साथ किसी भी प्रकार का एग्रीमेंट कर सकता है ।
इसलिए, एक कंपनी अपने अंशधारियों के प्रति दावा प्रस्तुत कर सकती है, तथा ठीक इसके विपरीत अंशधारी कम्पनी के विरुद्ध दावा प्रस्तुत कर सकते हैं । उपर्युक्त बातों के अलावा कोई भी अंशधारी कम्पनी के कार्यों के लिए जिम्मेदार नहीं होता चाहे वह कंपनी का स्वामी अर्थात जिसने कम्पनी के सभी अंशों को खरीद लिया हो, ही क्यों न हो ।
2. एक कृत्रिम व्यक्ति (An Artificial Person) :
जैसा की हम उपर्युक्त वाक्य में भी बता चुके हैं की कोई भी कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति अर्थात Artificial Person के समान कार्य करती है | और कंपनी का अस्तित्व उसको शुरू करने वाले व्यक्तियों या निर्माताओं से बिल्कुल पृथक अर्थात भिन्न होता है । जहाँ तक इसके निर्माण, संगठन एवं समापन का सवाल है यह केवल विधान अर्थात कानून के मुताबिक ही किया जा सकता है । जिस तरह से एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को अपनी सम्पति बेच सकता है या इसके उलट अन्य व्यक्ति से सम्पति खरीद सकता है |
ठीक उसी प्रकार कम्पनी भी किसी दूसरी कंपनी या व्यक्ति से सम्पति खरीद भी सकती है और उसे बेच भी सकती है | इसके अलावा अन्य उदहारण भी हैं जैसे जिस प्रकार कोई एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर मुकद्दमा दर्ज करा सकता है इसके उलट दूसरे व्यक्ति उस व्यक्ति पर मुकद्दमा चला सकते हैं, ठीक उसी प्रकार एक कम्पनी भी दूसरी कंपनियों या व्यक्तियों पर मुकद्दमा चला सकती है, तथा दूसरे व्यक्ति एवं कंपनियां उस कम्पनी पर मुकद्दमा चला सकते हैं ।
जिस प्रकार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ Agreements अर्थात अनुबंध कर सकता है उसी प्रकार कम्पनी द्वारा जारी किए हुए प्रपत्रों पर कम्पनी की मुहर (Common Seal) लगाई जाती है जो कि कम्पनी के हस्ताक्षर की तरह मानी जाती है । उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि व्यापार अर्थात बिज़नेस के लिए जितने अधिकार मनुष्य प्रयोग कर सकता है, तथा जितने उत्तरदायित्व या जिम्मेदारियां मनुष्य पर होते हैं उतने ही अधिकार व उत्तरदायित्व कम्पनी के भी होते हैं ।
मनुष्य और कंपनी में अन्तर केवल इतना है कि मनुष्य एक जीवित व्यक्ति है और उसका जन्म व मृत्यु कानून द्वारा निर्धारित नहीं होता है, जबकि कम्पनी एक निर्जीव कृत्रिम व्यक्ति है जिसकी स्थापना भी कानून द्वारा की जाती है और इसका अस्तित्व भी केवल कानून द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है ।
3. सार्व-मुद्रा (Common Seal)
सार्व-मुद्रा अर्थात कॉमन सील कम्पनी के अस्तित्व का प्रतीक होती है । किसी दस्तावेजों पर इसके लग जाने पर ही किसी कम्पनी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है । कॉमन सील पर कम्पनी का नाम खुदा रहता है, इस कॉमन सील के अंकित होने पर ही कम्पनी के सभी प्रलेख तथा प्रपत्र कम्पनी को वैधानिक रूप से उत्तरदायी ठहरा सकते हैं । इसलिए जिन प्रलेखों को कम्पनी की ओर से लिखा गया हो, लेकिन उन पर कंपनी की कॉमन सील न लगाई गई हो |
इस स्थिति में उन प्रलेखों के प्रति कम्पनी उत्तरदायी न होकर, वह व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा जिसने उन प्रलेखों पर हस्ताक्षर किये थे ।
इसकी इस विशेषता को यदि हम संक्षेप में समझने की कोशिश करेंगे तो हम पाएंगे की, कम्पनी को उसके उत्तरदायित्वों के प्रति बाध्य करने के लिए प्रत्येक प्रलेख पर कॉमन सील का लगाया जाना आवश्यक होता है, क्योंकि यह कॉमन सील ही होती है जो कंपनी के हस्ताक्षर के रूप में कार्य करती है | कंपनीज एक्ट की धारा 34 (2) में हर कंपनी को उसकी कॉमन सील रखने के लिए बाधित किया गया है |
4. शाश्वत उत्तराधिकार (Perpetual Succession)
कंपनी की यह विशेषता के अंतर्गत कम्पनी का शाश्वत उत्तराधिकार होता है यानिकी स्थायी अस्तित्व होता है । इसका अभिप्राय यह है कि कम्पनी का जीवन उसके सदस्यों के जीवन पर बिलकुल निर्भर नहीं करता है । अत: किसी सदस्य के मर जाने या दिवालिया हो जाने या कम्पनी से अलग हो जाने इत्यादि गतिविधियों का कम्पनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । कंपनी में एक के बाद दूसरा सदस्य आता व जाता रहता है, परन्तु कम्पनी का अस्तित्व पहले जैसा ही बना रहता है ।
कंपनी के बारे में कहा जा सकता है की चाहे कंपनी चाहे कंपनी के कार्यालय में बम फूटने के कारण कंपनी के कुछ सदस्य मर भी क्यों न जायं, लेकिन कंपनी बनी रहेगी । इसके अलावा यह भी कहा जाता है की विभिन्न प्रकार की आपदाओं हमलों में भले ही कंपनी की सम्पति नष्ट हो जाय लेकिन किसी प्रकार का कोई भी बम, हथियार, अग्नि चाहे वह हाइड्रोजन बम ही क्यों न हो इसको समाप्त नहीं कर सकते हैं |
इसलिए कंपनी की विशेषता के अंतर्गत यह कहा जा सकता है की कंपनी के किसी सदस्य के विद्यमान न होने पर कम्पनी की उपलब्धता या विद्यमानता समाप्त नहीं हो सकती है । यद्यपि कम्पनी के अन्तिम सदस्य की मृत्यु हो जाना भी कंपनी के समाप्त होने का या जीवित न रहने का कारण नहीं है | ” कम्पनी अधिनियम की धारा 34(2) के अनुसार, स्थापना की तिथि से ही कम्पनी शाश्वत उत्तराधिकार अर्थात् स्थायी अस्तित्व वाली हो जाती है ।
5. सीमित दायित्व (Limited Liability)
कम्पनी की इस विशेषता के अंतर्गत यह कहा जा सकता है की कंपनी के प्रत्येक सदस्य का दायित्व सामान्यतया सीमित रहता है । कहने का आशय यह है की अंशों द्वारा सीमित कम्पनी के सदस्यों का दायित्व उसके द्वारा खरीदे गए अंशों के अंकित मूल्य अर्थात Face Value तक ही सीमित रहता है । उदाहरणार्थ: माना A नामक व्यक्ति कंपनी से 100 अंश खरीदता है जिसमे प्रत्येक अंश अर्थात शेयर का अंकित मूल्य 150 रुपये है |
तो ऐसी स्थिति में A नामक व्यक्ति का कंपनी के प्रति दायित्व केवल 15000 रुपये तक ही सीमित है अर्थात् उस A नामक व्यक्ति से 15000 रुपये से अधिक नहीं मांगे जा सकते हैं । इसके अलावा यदि वह इन अंशों पर कुछ रुपये दे चुका है तो उसका दायित्व बची हुई राशि तक ही सीमित है । यहां पर इस बात पर ध्यान देना जरुरी है की कम्पनी के सदस्यों का दायित्व Company के समापन होने पर ही शुरू होता है और उसी राशि तक सीमित होता है जितनी राशि के लिए उसने गारण्टी दी थी ।
कंपनी की इस विशेषता के अंतर्गत सर्वप्रथम यह जान लेते हैं की अंश अर्थात शेयर चल सम्पत्ति की श्रेणी में आते हैं | कम्पनी का प्रत्येक अंशधारी अर्थात शेयरहोल्डर, बिना किसी भी अन्य सदस्यों की सहमति के अपने शेयरों को किसी भी अन्य व्यक्ति के पक्ष में हस्तांतरण करने का अधिकार रखता है । कहने का आशय यह है की कोमप्न्य का कोई भी अंशधारक बिना किसी की सहमती के अपने शेयर किसी अन्य को ट्रान्सफर कर सकता है |
लेकिन एक कम्पनी अपने अन्तर्नियमों अर्थात कोमप्न्य के नियमों के अधीन शेयरों के हस्तांतरण पर कुछ प्रतिबन्ध लगा सकती है, लेकिन इसे पूर्णतया समाप्त नहीं कर सकती । एक लिमिटेड कंपनी अर्थात पब्लिक कंपनी की तुलना में प्राइवेट कम्पनी शेयरों के हस्तांतरण पर अधिक प्रतिबन्ध लगा सकती है ।
7. स्वामित्व एवं प्रबंधन का अलग अलग होना:
अक्सर होता क्या है की कम्पनी में सदस्यों की संख्या अधिक होती है, इसलिए हर सदस्य के लिए यह सम्भव नहीं हो पाता है कि वह कम्पनी के संचालन के कार्यों में भाग ले सके । यही कारण है की कम्पनी स्वामित्व एवं प्रबंधन अलग अलग होता है |
इस प्रणाली के अनुसार कम्पनी का प्रबन्ध कंपनी के स्वामित्व अर्थात अंशधारियों द्वारा चुने गये उनके प्रतिनिधियों जिन्हें संचालक भी कहते हैं के द्वारा किया जाता है । और जहाँ तक संचालकों के अधिकार तथा दायित्वों का सवाल है, इन्हें Company के Internal Rules बनाकर निश्चित किया जाता है ।
8. लाभ के लिए स्वैच्छिक एसोसिएशन (Voluntary Association):
कंपनी की इस विशेषता के अंतर्गत हम जानेंगे की कंपनी लाभ कमाने के लिए बनाई गई एक स्वैच्छिक संस्था होती है । कहने का आशय यह है की किसी भी व्यक्ति का कंपनी को बनाने के पीछे मूल उद्देश्य लाभ कमाना होता है | इसमें यह भी स्पष्ट कर देना जरुरी है की लाभ कमाने के उद्देश्य का अभिप्राय यह बिलकुल नहीं होता है कि कंपनी द्वारा ऐसी क्रियाएं की जायें जो अवांछनीय या जनहित के विरुद्ध हों ।
भारत में स्थापित कोई कंपनी कंपनी अधिनियम में उल्लेखित बातों का एवं अन्य कानूनों का अनुसरण करते हुए वैधानिक रूप से लाभ कमा सकती हैं | यह कमाया हुआ लाभ नियमित रूप से लाभांश अर्थात Dividend के रूप में अंशधारियों या शेयरहोल्डर में बांट दिया जाता है । चूंकि Company एक स्वैच्छिक संस्था होती है इसलिए किसी भी व्यक्ति को दबाव इत्यादि से अंशधारी अर्थात शेयरहोल्डर नहीं बनाया जा सकता है ।
9. कंपनी किसी अन्य पर अभियोग चला सकती है और अन्य कंपनी पर:
एक कंपनी के अन्दर कम्पनी की सारी गतिविधियाँ, कार्यवाहियां कम्पनी के नाम में ही होती है । इसलिए यदि किसी व्यक्ति ने कंपनी के साथ छल, धोखा या अन्य अपराध किया हो तो उस व्यक्ति पर कंपनी के नाम से ही अभियोग चलाया जा सकता है | इसके अलावा इसके उलट अन्य व्यक्ति भी किसी कंपनी पर अभियोग चला सकते हैं ।
10. कम्पनी एक नागरिक नहीं है (Company is not a Citizen):
कंपनी की यह विशेषता कहती है की कंपनी कोई नागरिक नहीं है, जैसे की हम उपर्युक्त वाक्य में पढ़ चुके हैं की एक कंपनी को बहुत सारे अधिकार प्राप्त हैं जो एक व्यक्ति को होते हैं, लेकिन इसके बावजूद संविधान के अनुसार कंपनी कोई नागरिक नहीं है | जैसा की हम पहले भी बता चुके हैं की कम्पनी का अस्तित्व उसके अंशधारियों से पूर्णतः अलग होता है । इसलिए इसे एक भारतीय नागरिक की भांति मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं । इसलिए कहा यह जा सकता है की एक कंपनी अपने मौलिक अधिकारों के लिए दावा प्रस्तुत नहीं कर सकती ।
11. कानून द्वारा स्थापना कानून द्वारा समापन:
कंपनी की विशेषताओं में कंपनी की यह विशेषता यह है की कंपनी की स्थापना एवं समापन दोनों कानून द्वारा ही संभव होता है | जैसा की हम उपर्युक्त वाक्य में भी बता चुके हैं की कंपनी की स्थापना विधान द्वारा अर्थात अधिनियम द्वारा होती है | चूँकि इसकी स्थापना कानून के मुताबिक होती है इसलिए ठीक उसी प्रकार इसका समापन भी अधिनियम या विधान के मुताबिक ही किया जा सकता है ।
यद्यपि हमारी Google email id ikamai488@gmail.com पर हमें बहुत सारे लेख प्राप्त हुए हैं, जिनमे से सभी को चयन करके प्रकाशित कर पाना हमारे लिए इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि कुछ हमारे विषयवस्तु से मेल नहीं खाती हैं, तो कुछ इस शैली के नियमों का उल्लंघन करते हुए नज़र आते हैं |
यह लेख कंपनी का अर्थ एवं विशेषताएं (Company Meaning and Characteristics in Hindi) उत्तर प्रदेश, लखनऊ से श्री नवल भट्ट जी ने भेजा है, इसलिए इस लेख के माध्यम से हम उनके इस प्रयास की प्रशंसा करते हुए उनका धन्यबाद व्यक्त करते हैं |
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