Economic Recession: आर्थिक मंदी क्या होती है? क्यों होती है, इसके प्रभाव क्या होते हैं ।

Recession meaning in Hindi : वर्तमान में पूरी दुनिया को आर्थिक मंदी की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। जब हाल ही में चीन की एक प्रसिद्ध कंपनी अलीबाबा ने अपने 10 हज़ार कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। तो चीन में इसकी सुगबुगाहट और तेज हो गई। सिर्फ चीन में ही नहीं दुनिया के अन्य देशों में भी बढती महंगाई, घटते रोजगार, सुस्त अर्थव्यवस्था की रफ़्तार दुनिया के बाज़ारों को आर्थिक मंदी की ओर ले जाने का ही ईशारा कर रही है।

मंदी जैसे शब्द हर रोज समाचार चैनलों या आम बोलचाल में हमारे कानों में पड़ते रहते हैं। लेकिन हमें इसका मतलब पूरी तरह समझ में नहीं आता है। आर्थिक मंदी अर्थशाश्त्र पढ़ने वाले विद्यार्थियों का एक महत्वपूर्ण टॉपिक भी हो सकता है। इसलिए आज हम हमारे इस लेख के माध्यम से आर्थिक मंदी क्या है? अर्थव्यवस्था में यह कैसे पैदा होती है? और इसके प्रभाव क्या होते हैं? इत्यादि प्रश्नों का हल ढूँढने का प्रयास करेंगे।

economic recession kya hai

आर्थिक मंदी की परिभाषा (Definition of Recession in Hindi):  

Aarthik Mandi Kya hoti hai : वैसे आर्थिक मंदी का अनुमान तिमाही की सकल घरेलु उत्पाद रिपोर्ट आने से पहले प्रमुख आर्थिक संकेतकों जैसे मैन्युफैक्चरिंग डाटा, लोगों की आय में गिरावट, रोजगार के स्तर के आधार पर लगाई जा सकती है। लेकिन किसी भी देश में मंदी तब मानी जाएगी जब उसकी जीडीपी की विकास दर कम से कम लगातार दो तिमाहियों में नकारात्मक अर्थात माइनस में होगी।

एक अर्थव्यवस्था में जब मंदी का उदगम होता है, तो वह अचानक से नहीं होता है। बल्कि मंदी अपने आने का संकेत महीनों पहले से दे देती है। क्योंकि कम रोजगार, अधिक महंगाई, लोगों की आय में कमी इत्यादि ऐसे संकेत हैं, जो किसी भी अर्थव्यवस्था को आर्थिक मंदी की ओर जाने का संकेत देती हैं।

लेकिन किसी देश की अर्थव्यवस्था में मंदी है या नहीं, इसकी पुष्टि करने में काफी समय लगता है। यद्यपि मंदी तो अर्थव्यवस्था में कुछ समय के लिए ही रहती है, लेकिन इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था में काफी लम्बे समय तक बना रहता है।

साधारण शब्दों में आर्थिक मंदी आर्थिक गतिविधियों में होने वाली गिरावट या संकुचन का परिणाम है । जब लोगों की आय कम हो जाती है, तो वे खर्चा करना कम कर देते हैं। खर्च में गिरावट के कारण आर्थिक गतिविधियों में अंकुश लग जाता है। जिससे मंदी का उदय होता है।

मंदी क्यों आती है?

अर्थशाश्त्र में मंदी के स्रोतों को समझना हमेशा से ही अनुसन्धान का विषय रहा है। क्योंकि मंदी आने के एक नहीं बल्कि कई कारण होते हैं। लेकिन जो सबसे आम कारण है, वह यह है की जब वैश्विक बाज़ारों में रोजगार की कमी, लोगों की आय में गिरावट, उत्पादों और सेवाओं के दामों में वृद्धि हो जाती है। तो लोगों के पास खर्चा करने के लिए पैसे की कमी हो जाती है।

या यूँ कहें की लोग महंगी चीजों को खरीदना कम कर देते हैं, वे केवल बेहद जरुरी सामानों पर ही खर्च करते हैं । उदाहरण के लिए जब मार्किट में प्याज के दाम बढ़ जाते हैं, तो कुक लोग तो प्याज खाना ही बंद कर देते हैं और कुछ लोग जहाँ पर दो प्याज काटते थे, वहाँ पर आधा ही काटते हैं।

जब बाज़ार में महंगाई होती है, तो लोग विलासिता की वस्तुओं को खरीदना बंद कर देते हैं। केवल उतनी ही खरीदारी करते हैं जो उनके लिए बेहद जरुरी हो। इससे आर्थिक गतिविधियों में काफी गिरावट आ जाती है, और अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी की ओर बढ़ने लगती है।

कई ऐसी अर्थव्यवस्थाएं जो केवल निर्यात पर टिकी हुई हों, उनमें तब मंदी आ जाती है जब बाहरी देशों में उनके वस्तुओं या सेवाओं की माँग कम हो जाती है। इसके अलावा कोरोना वायरस जैसी महामारी जिसमें सम्पूर्ण विश्व को लॉकडाउन का सामना करना पड़ा था। और सभी आर्थिक गतिविधियाँ ठप पड़ गई थी, की वजह से भी आर्थिक मंदी आ सकती है।

अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी के प्रभाव

भले ही मंदी अल्प समय के लिए रहती हो, लेकिन इसका असर अर्थव्यवस्था में बड़े लम्बे समय तक देखा जा सकता है। चूँकि आर्थिक मंदी के दौरान कंपनियों, फैक्ट्रीयों इत्यादि के उत्पाद एवं सेवाओं की बिक्री में भारी गिरावट आ जाती है। जिससे वे अपने खर्चों को कम करने के लिए छंटनी प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। छंटनी प्रक्रिया में सबसे पहले भारी वेतन लेने वाले ऐसे लोगों को निशाना बनाया जाता है, जिनका प्रदर्शन अन्य के मुकाबले खराब रहा हो।

इसलिए कहा जा सकता है की आर्थिक मंदी के दौरान कम कुशल श्रमिकों की नौकरी खतरे में पड़ जाती है। जिससे बेरोजगारी बढती है। मंदी के अन्य परिणामों में उत्पादन में गिरावट होना, और व्यापार या कंपनी पूरी तरह से बंद होना भी है।

मंदी के दौरान माँग बहुत ज्यादा घट जाती है, इसलिए कंपनियों को उत्पादन में भारी गिरावट करनी पड़ती है, इस दौरान कई ऐसी छोटी छोटी कंपनियाँ होती हैं। जिनके पास वित्त की कमी हो जाती है, और मजबूरन उन्हें अपना बिजनेस बंद करना पड़ता है।

यह उत्पादन में गिरावट छोटी छोटी कमजोर कम्पनियों को बाज़ार से बाहर करके ही मानती हैं, उसके बाद भी जो फर्म बच जाती है उनमें प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक बढ़ जाती है।

बेरोजगारी बढ़ जाने के कारण लोगों की आय में काफी गिरावट आ जाती है, और वे अपने परिवार का भरण पोषण करने में भी असमर्थ होने लगते हैं। उसके बाद सरकार से कल्याणकारी योजनाओं में राजस्व को बढ़ाने की माँग की जा सकती है। आर्थिक मंदी के दौरान सरकारी राजस्व में भी गिरावट आ जाती है, जिसके कारण सरकार के लिए भी कल्याणकारी योजनाओं पर राजस्व में वृद्धि करना एक चुनौती बन जाती है।

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