Privatisation : निजीकरण क्या है, इसके फायदे एवं नुकसान।

आए दिनों Privatisation यानिकी निजीकरण समाचारों की सुर्ख़ियों में छाया रहता है। कभी सुनने में आता है की सरकार ने किसी कंपनी का प्राइवेटाइजेशन कर दिया । तो कभी सुनने में आता है की, सरकार बैंकों का निजीकरण करने की योजना बना रही है। इसकी सुर्ख़ियों में रहने का मुख्य कारण यह होता है की सत्ताविहीन पार्टी यानिकी विपक्ष (वह पार्टी जो सत्ता में न हो) इसे मुद्दा बना लेता है। और जिस संगठन का निजीकरण हो रहा होता है, उसके कर्मचारी भी इसके खिलाफ होते हैं।  

शायद यही कारण है की आए दिनों हमारे कानों से Privatisation और निजीकरण जैसे शब्द गुजरते रहते है। इसलिए वर्तमान में अधिकतर लोग निजीकरण के बारे में और अधिक जानने को उत्सुक रहते हैं। आज हम हमारे इस लेख के माध्यम से निजीकरण के बारे में ही जानने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं।

Privatisation यानिकी निजीकरण करने के पीछे मुख्य तर्क यह दिया जाता है, चूँकि निजी क्षेत्र के उद्यम बाजार के नियमों के अधीन काम करते हैं, इसलिए उनकी कार्यकुशलता सरकारी उद्यमों से अच्छी होती है।

privatisation kya hai
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निजीकरण क्या है (Privatisation Kya hai):

साधारण शब्दों में कहें तो किसी ऐसे संगठन या सर्विस जिसका प्रबंध सरकार या सरकारी कंपनियाँ कर रही हों। उनका स्वामित्व और प्रबंध किसी निजी कंपनी के हाथों में दे देना ही निजीकरण यानिकी Privatisation है।   

कहने का आशय यह है की जब किसी सरकारी यानिकी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी या संगठन का स्वामित्व, प्रबंधन एवं नियंत्रण निजी क्षेत्र की कंपनी को दे दिया जाता है, तो इसे निजीकरण कहते हैं।

निजीकरण में सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी या संगठनों का स्वामित्व ट्रांसफर होना ही नहीं आता, बल्कि कोई सर्विस जिसे सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र की और ट्रान्सफर किया जा रहा है, वह भी आता है। जिसका मतलब यह है की सरकारी सेवाओं और कार्यों का भी निजीकरण किया जा सकता है।

ऐसी स्थिति में सरकारी योजनाओं को लागू करने और सरकारी कार्यों को पूर्ण करने की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र की कंपनियों को दिया जाता है। इसमें आउटसोर्स यानिकी ठेके पर देने की प्रथा भी शामिल है। जिसके तहत सार्वजनिक कंपनियों या संगठनों की गतिविधियों को निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा किया जाता है ।

निजीकरण की प्रमुख विशेषताएँ

निजीकरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  • निजीकरण में किसी सार्वजनिक उपक्रम, कंपनी, सर्विस, सम्पति इत्यादि के स्वामित्व का हस्तांतरण निजी क्षेत्र की कंपनियों को हो रहा होता है।
  • Privatisation के माध्यम से उस कंपनी, उपक्रम, सर्विस में राज्य या सरकार का हस्तक्षेप कम हो जाता है, जिसका निजीकरण कर दिया गया हो।
  • निजीकरण से सरकार या राज्य का एकाधिकार कम और कमजोर होता है, जिससे आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा मिलता है।   

निजीकरण के लक्ष्य (Objective of Privatisation)

निजीकरण के प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार से हैं।

कार्यक्षमता और दक्षता में सुधार

आम तौर पर देखा गया है की सरकार द्वारा संचालित कंपनियाँ प्रमुख रूप से आर्थिक कल्याण के बजाय राजनैतिक इरादों से प्रभावित हो सकती हैं। कहने का आशय यह है की सरकार द्वारा संचालित कंपनियों में लिए जाने वाले निर्णय राजनैतिक इरादों से ओत-प्रोत होते हैं। इससे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के विकास और दक्षता में बाधा पहुँचती है।

Privatisation से उस विशेष कंपनी में सरकार का हस्तक्षेप कम हो जाता है, जिससे आर्थिक विकास में सहायता मिलती है। निजी क्षेत्र की कंपनियाँ केवल केवल आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने में समर्पित रहती है, वह इसलिए क्योंकि वे राजनैतिक एजेंडे से मुक्त होती हैं।

बाज़ार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना –

सरल भाषा में समझें तो हम यह कह सकते हैं की आप बाज़ार में टमाटर लेने गए, और वहाँ पर सब्जी की केवल एक ही दुकान थी। और आपको उस दुकान के टमाटर पसंद नहीं थे, लेकिन चूँकि वह एक ही दुकान थी इसलिए आपको वहीँ से वे टमाटर खरीदने पड़े।

सरकार द्वारा संचालित कंपनियाँ बाज़ार में स्थित प्रतिस्पर्धा से मुक्त होती हैं, वह इसलिए क्योंकि सरकारी काम कोई भी हों, जनता को सिर्फ एक ही जगह से कराने होते हैं। लेकिन जब सरकारी कंपनी या सर्विस का Privatisation हो जाता है, तो उसके बाद प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है।

प्रतिस्पर्धा बढ़ने से बाज़ार में एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती है। और इस होड़ में कंपनियाँ अपनी सर्विस या प्रोडक्ट को सुधारने में नई नई चीजें ईजाद करती हैं। जो समग्र आर्थिक विकास और औद्यौगिक विकास को गति देने में सहायक होता है।

बाज़ार को गतिशील बनाये रखना –

निजीकरण का अगला लक्ष्य बाज़ार को गतिशील बनाये रखना भी है। चूँकि Privatisation अर्थव्यवस्था को राज्य या सरकार के नियंत्रण से मुक्त कर देता है। इसलिए बाज़ार उन सरकारी नियमों से भी मुक्त हो जाता है, जो उसे गतिशील बनाने में बाधक होते हैं।

जब बाज़ार में सरकारी हस्तक्षेप कम या फिर ख़त्म हो जाता है, तो बाज़ार और अधिक गतिशील हो जाता है। इसलिए ऐसा बाज़ार अधिक राजस्व भी पैदा करता है।

कंपनी को बेचकर राजस्व प्राप्त करना –

कई सरकारी कंपनियाँ बंद पड़ी हुई होती हैं, या फिर घाटे में चल रही होती है। जिन्हें जिन्दा रखने के लिए सरकार हर वित्तीय वर्ष में हजारों करोड़ रूपये के पैकेज की घोषणा करती है। जब बंद पड़ी या घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों से सरकार का लक्ष्य राजस्व प्राप्त करना होता है, तो वह उन कंपनियों का Privatisation यानिकी निजीकरण कर देती है।

इसके अलावा सरकारें वित्तीय संकट से उबरने के लिए भी निजीकरण की राह अपना सकती है।

निजीकरण की विधियाँ (Methods of Privatisation)

एक सरकारी कंपनी का निजीकरण करने के लिए प्रमुख रूप से पांच विधियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। जिनकी डिटेल्स इस प्रकार से है।

  1. सार्वजनिक नीलामी – सरकारी स्वामित्व वाली सम्पति से अधिक से अधिक राजस्व जुटाने के उद्देश्य से इस तरह की नीलामी की जाती है। इस नीलामी में किसी सरकारी कंपनी या अन्य लॉन्ग टर्म एसेट के शेयरों की नीलामी करना शामिल है।
  2. शेयरों को बेचकर निजीकरण – जब सरकार को किसी सरकारी कंपनी या उपक्रम का निजीकरण करना होता है। तो वह उसके शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से बेच सकती है। जिस कंपनी या व्यक्ति के शेयर उस विशेष सरकारी उपक्रम या कंपनी में अधिक होते हैं। उसका स्वामित्व उसके पास ही जा सकता है।    
  3. निजी क्षेत्र की कंपनियों से सीधे बातचीत के जरिये – सरकार को जब किसी सरकारी उपक्रम या कंपनी का Privatisation कराना होता है, तो वह सीधे कुछ विशिष्ट कंपनियों से बातचीत करके भी उसका स्वामित्व निजी कंपनियों को सौंप सकती है। लेकिन या सीधी बातचीत उन्हीं से की जाएगी, जिन कंपनियों ने उस विशेष उपक्रम या कंपनी के निजीकरण प्रक्रिया में हिस्सा लिया हो।
  4. पब्लिक टेंडर के माध्यम से – इसके माध्यम से रूचि रखने वाले खरीदारों को आकर्षित किया जाता है। एक टेंडर भी एक नीलामी की तरह ही होता है, यहाँ पर भी सबसे आकर्षक प्रस्ताव देने वाले उम्मीदवार को उसे बेचा जाता है। इसमें पहले से चयनित खरीदारों की लिस्ट तैयार की जाती है, और उन्हें टेंडर भरने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
  5. खरीद के अधिकार के साथ पट्टे पर देना – सरकारी उपक्रमों और कंपनियों का Privatisation करने के लिए सरकार इन्हें खरीद के अधिकार के साथ पट्टे पर यानिकी लीज पर भी दे सकती है । एक समयावधि के बाद जिस निजी क्षेत्र की कंपनी ने सरकारी उपक्रम या कंपनी को पट्टे पर लिया हो, वह सरकार को एकमुश्त राशि का भुगतान करके उसे खरीद भी सकती है। और उस पर अपना स्वामित्व काबिज कर सकती है।

निजीकरण के फायदे (Advantages of Privatisation)

निजीकरण यानिकी Privatisation के कई फायदे हैं जिनमें से कुछ प्रमुख फायदों की लिस्ट इस प्रकार से है।

कंपनी/उपक्रम के प्रदर्शन में सुधार होता है – 

सरकारी उपक्रमों में लालफीताशाही और भारी नौकरशाही का दबदबा रहता है। जिस कारण योग्य और काम करने वाले लोगों की अनदेखी हो सकती है। जबकि निजी क्षेत्र की कंपनियाँ राजनैतिक एजेंडों से मुक्त होती हैं, इसलिए यहाँ पर योग्य और कुशल कर्मचारियों को प्रोत्साहन दिया जाता है।  

कहने का आशय यह है की निजी क्षेत्र की कंपनियाँ अपने कर्मचारियों का मूल्यांकन उनके काम के वर्षों से नहीं बल्कि उनके प्रदर्शन के आधार पर करती हैं। जिससे कर्मचारी बेहतर प्रदर्शन करने की ओर प्रोत्साहित होते हैं।

ग्राहक सेवा बेहतर होती है –

निजी कंपनियों का प्रमुख लक्ष्य लाभ अर्जित करना होता है। और इस प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ कमाना आसान नहीं है। इसलिए वे हमेशा ग्राहकों को खुश करने की तरकीबों पर विचार करते हैं, ताकि प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वे अपनी अलग सी पहचान बना पाएँ।

अधिक से अधिक ग्राहकों को रिझाने के लिए वे अपनी ग्राहक सेवा में निरंतर सुधार करते रहते हैं। सरकारी कंपनियाँ एकाधिकार का आनंद लेती हैं, इसलिए उनमें ग्राहक सेवा जैसी महत्वपूर्ण सर्विस का अभाव देखा जा सकता है। इसलिए कहा जा सकता है की Privatisation ग्राहक सेवा को बेहतर करने का समर्थन करती है।

कंपनी के प्रबन्धन को बेहतर करता है –

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और कंपनियों में जवाबदेही तो तय होती है। लेकिन प्रदर्शन अच्छा नहीं होने पर नौकरी से निकाले जाने का भय नहीं होता है। यही कारण है की सरकारी कंपनी का प्रबंधन निजी क्षेत्र की कंपनी के मुकाबले कहीं पर नहीं टिकता है।

निजी क्षेत्र की कंपनी में कंपनी के प्रबंधक व्यवसाय के स्वामी के प्रति जवाबदेह होते हैं, और अच्छा प्रदर्शन न करने पर उन्हें नौकरी से निकाले जाने का भी भय होता है। इसलिए वे कंपनी के प्रबंधन को चुस्त दुरुस्त बनाये रखते हैं।

निजीकरण के नुकसान (Disadvantages of Privatisation):

Privatisation की कई हानियाँ भी हैं, जिनमें से प्रमुख हानियों की लिस्ट निम्न है।

निजी क्षेत्र की कंपनियों का एकाधिकार का भय –

चूँकि निजीकरण, सार्वजनिक क्षेत्रों में भी निजीकरण को प्रोत्साहित करता है। जिससे सार्वजनिक क्षेत्रों में निजी कंपनियों के एकाधिकार का भय बना रहता है। हालांकि सरकार समय समय पर इन्हें विनियमित और नियंत्रित करने सम्बन्धी नियम कानून बना सकती है। लेकिन इसके बावजूद भी एकाधिकार को विनियमित करने का मुद्दा प्रमुख रहा है।

कर्मचारी नाखुश होते हैं –

आपने ध्यान दिया होगा जिस भी सरकारी उपक्रम या कंपनी काPrivatisation होने वाला होता है। उस निर्णय से सबसे ज्यादा नाखुश उस सरकारी उपक्रम या कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी होते हैं। क्योंकि सरकारी कंपनियों में जॉब सिक्यूरिटी और नौकरी में स्थायित्व बना रहता है। जबकि निजी क्षेत्र के उद्यमों में प्रदर्शन के आधार पर बदलाव होते रहते हैं।

इसके अलावा सरकारी उपक्रमों/कंपनीयों में कार्यरत कर्मचारियों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ, शिक्षा, आवास, सार्वजनिक परिवहन, स्वास्थ्य देखभाल इत्यादि मिलती हैं। जबकि निजी क्षेत्र की कंपनियों में इन सबकी कमी देखी जा सकती है । इसलिए जनहित भी एक मुद्दा जो इसके आड़े आता रहता है।

जनता के प्रति जवाबदेही –

सरकार जनता के लिए काम कर रही होती है, इसलिए जनता के प्रति उसकी जवाबदेही होती है। और यह सरकार के निर्णयों में कभी कभी दिख भी जाता है। लेकिन निजी कंपनियों पर जनता का किसी तरह का कोई नियंत्रण नहीं होता है। और प्रमोटर एवं निवेशकों को कंपनी के साथ कुछ भी करने का अधिकार होता है। इसलिए कहा जा सकता है की Privatisation जनता के प्रति जवाबदेही को कम करता है।

सफलता का सुनिश्चित न होना –

यद्यपि हो सकता है की सरकार किसी ऐसे उपक्रम या कंपनी काPrivatisation करने जा रही हो, जो या तो घाटे में चल रही हो या फिर बंद हो । लेकिन निजीकरण करने के बाद भी यह सुनिश्चित करना कठिन है की कंपनी आने वाले समय में लाभ कमाएगी ही। बाज़ार में घोर प्रतिस्पर्धा के कारण कंपनी को नुकसान भी हो सकता है।

आम तौर पर सरकारी उद्यमों/सर्विस इत्यादि का Privatisation करने के पीछे सरकार का लक्ष्य देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाना होता है। लेकिन देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के योगदान को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए जहाँ उद्यमों की दक्षता, प्रबंधन इत्यादि में सुधार जरुरी है, वहीँ सामजिक न्याय को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।     

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