शेयरों की श्रेणी की बात करें तो Bombay Stock Exchange में सूचीबद्ध शेयरों को विभिन्न श्रेणियों में बाँटा जा सकता है, इनमें से कुछ मुख्य श्रेणियां A, B1, B2 इत्यादि हैं | शेयरों को इन विभिन्न श्रेणियों में विभाजित करने के अपने मतलब तथा अपनी अपनी व्याख्याएँ हो सकती हैं । किसी भी शेयर को शेयरों की श्रेणी में रखने से पहले कई बातों पर विचार किया जाना जरुरी होता है जो की किया भी जाता है । शेयरों को शेयरों की श्रेणी में रखते समय प्रमुख दो बिन्दुओं ‘मार्केट कैपिटलाइजेशन’ तथा ‘ट्रेडिंग वॉल्यूम’ पर प्रमुख रूप से गौर किया जाता है ।
इन दोनों प्रमुख बातों अर्थात Market Capitalization एवं Trading Volume को मिलाकर ही तय किया जाता है कि किसी कंपनी का शेयर किस श्रेणी के अंतर्गत रखा जाना चाहिए । A श्रेणी के अंतर्गत रखी जाने वाली कंपनियों का ‘उच्च बाजार पूँजीकरण’ (High Market Capitalization) तथा उच्च ट्रेडिंग वॉल्यूम’ अर्थात बड़ी मात्रा में शेयरों का लेन-देन होता है । यद्यपि उच्च बाजार पूँजीकरण (लार्ज कैप) तथा मध्यम बाजार पूँजीकरण’ (मिड कैप) के वर्गीकरण के मापदंडों में परिवर्तन होता रहता है ।
जिन कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइजेशन मध्यम आकार का होता है तथा शेयरों की तरलता (लिक्विडिटी) अपेक्षाकृत कम होती है, उन शेयरों की श्रेणी को ‘B’ श्रेणी में आँका जाता है । शेयरों की कीमतों में परिवर्तन तथा बाजार की परिस्थितियों में बदलाव के चलते कंपनियों के शेयर एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में परिवर्तित हो सकते हैं जो की समय समय पर परिवर्तित होते भी रहते हैं ।
1. ‘एस’ ग्रुप के शेयर
शेयरों की श्रेणी में पहली श्रेणी एस’ ग्रुप के शेयर की है, छोटी कंपनियाँ, जिनका पैडअप कैपिटल 20 करोड़ रुपए तक का हो तथा वे बी.एस.ई. (Bombay Stock Exchange ) में लिस्टेड अर्थात सूचीबद्ध हों, तो ऐसे शेयर ‘एस’ ग्रुप के शेयर्स कहलाते हैं । यहाँ ‘एस’ का अभिप्राय ‘स्मॉल कैपिटल स्टॉक’ से है । इनमें से कई कंपनियाँ पहले क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होती थीं, फिर उन्हें इस श्रेणी अर्थात एस’ ग्रुप में डाल दिया गया ।
2. शेयरों की श्रेणी ‘टी’ ग्रुप
इस ‘टी’ ग्रुप नामक शेयरों की श्रेणी में टी से अभिप्राय ट्रेड टू ट्रेड सेग्मेंट से है इस श्रेणी के अंतर्गत वे कंपनियाँ आती हैं, जिनकी शेयरों की ट्रेडिंग में बहुत ज्यादा स्पेकुलेशन तथा वोलेटिलिटी रहती है । स्पेकुलेशन अर्थात अटकलों के प्रभाव को कम करने के लिए शेयरों को इस श्रेणी में डाला जाता है ।
इस श्रेणी के तहत दर्ज शेयरों की ट्रेडिंग के दौरान प्रत्येक लेन-देन में शेयरों की डिलीवरी देना अनिवार्य होता है, यह सब इसलिए होता है ताकि जब तक कोई निवेशक शेयरों की डिलीवरी देने में सक्षम न हो, शेयरों का लेन-देन न कर सके । इससे स्पेकुलेशन पर नियंत्रण अर्थात कण्ट्रोल बना रहता है ।
3. ‘जेड’ श्रेणी के शेयर
माना यह जाता है की निवेशकों को ‘जेड’ श्रेणी के शेयरों के प्रति सदैव सावधान रहना चाहिए, क्योंकि शेयरों की श्रेणी में इस श्रेणी की कंपनियों द्वारा स्टॉक एक्सचेंज के मापदंडों का पूरी तरह पालन नहीं किया गया होता है । इस श्रेणी के शेयरों में निवेश जोखिम भरा हो सकता है; क्योंकि इन कंपनियों के साथ डिलिस्टिंग की संभावना जुड़ी होती है ।
ऐसी स्थिति में निवेशक कभी मालामाल तो कभी कंगाल भी ओ सकते हैं यही कारण है की निवेशकों को इस शेयरों की श्रेणी के प्रति हमेशा सतर्कता बरतनी पड़ती है ।
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