अश्वगंधा की खेती करके हो सकते हैं मालामाल। Ashwgandha Farming in Hindi.

अश्वगंधा की खेती का चलन धीरे धीरे बढ़ रहा है, अश्वगंधा को असगंद नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसा झाड़ीनुमा सीधा बढ़ने वाला पौधा जिसकी आम तौर पर ऊँचाई 1.4 से 1.5 मीटर होती है। अश्वगंधा का पौधा शुष्क और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छे तरीके से बढ़ता है। इसके अलावा इसे भारतीय जिन्सेंग, जहरीला आँवला और विंटर चेरी के तौर पर भी जाना जाता है। अश्वगंधा का पौधा मजबूत और कठोर होता है। उत्तर भारत के उत्तर पश्चिमी और मध्य भागों में इसे एक औषधीय पौधे के तौर पर उगाया जाता है।

इस पौंधे की जड़ों का उपयोग प्राचीनकाल से ही यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा में कई तरह के रोगों के उपचार में किया जाता रहा है। इसलिए अश्वगंधा की खेती करना किसी भी उद्यमी के लिए बेहद लाभकारी साबित हो सकता है। अश्वगंधा की जड़ी बूटी का सम्बन्ध सोलानेसी और विथानिया के जीनस परिवार से है, यही कारण है की इसका वैज्ञानिक नाम विथानिया सोम्नीफेरा है।

अश्वगंधा की खेती

रंग में अश्वगंधा के पौधे हलके हरे होते हैं जबकि आकार में अंडाकार और इनकी लम्बाई 10 से 12 सेमी तक होती है। इसके फल जब पाक जाते हैं, तो वे नारंगी लाल रंग के दिखाई देते हैं। यदि अच्छे कृषि प्रबंधन सिस्टम के साथ व्यवसायिक रूप से अश्वगंधा की खेती की जाती है। तो यह बहुत अधिक मुनाफा देने वाली खेती हो सकती है। अश्वगंधा का इस्तेमाल में लाया जाने वाला हिस्सा इसकी जड़ और पत्तियों के बीज होते हैं।

अश्वगंधा के स्वास्थ्य लाभ

अश्वगंधा के कुछ प्रमुख स्वास्थ्य लाभों की लिस्ट इस प्रकार से है ।

  • अश्वगंधा प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है, जिससे शरीर रोगों का मुकाबला करने में सक्षम होता है।
  • यह कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने या कम करने में भी मददगार साबित होता है।
  • ब्लड सुगर की नियंत्रित करने में मदद करता है ।
  • यह ह्रदय के लिए अच्छा माना जाता है ।
  • अश्वगंधा से कोलेजन में उत्तेजना आती है, जिससे घाव को जल्दी भरने में मदद मिलती है।
  • यह तनाव, डिप्रेशन और टेंशन को कम करने में मददगार साबित होता है ।
  • अंडरएक्टिव थायराइड को उत्तेजित करने में भी यह मदद करता है।
  • शरीर की मांसपेशियों और ताकत को बढ़ाने में सहायक है ।
  • सूजन और दर्द को कम करने में भी सहायक होता है ।
  • अश्वगंधा के इस्तेमाल से यादाश्त और संज्ञानात्मक प्रदर्शन को बढाया जा सकता है ।
  • स्वस्थ प्रजनन प्रणाली में भी यह सहायक होता है ।
  • ऊर्जा के स्तर और जीवन शक्ति को बढ़ाने में मददगार साबित होता है ।
  • अश्वगंधा शरीर के जोड़ों और आँखों के स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद माना जाता है ।
  • यह शरीर में कुछ प्रकार के कैंसर कोशिकाओं को विकसित होने से रोकने में भी अहम् भूमिका निभाता है ।   

 भारत में अश्वगंधा की खेती किन राज्यों में की जाती है

भारत में अश्वगंधा की खेती मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में प्रमुख तौर पर की जाती है । क्योंकि इन्हीं राज्यों में इस फसल का उत्पादन सफलतापूर्वक किया जाता है। भारत के अलग अलग राज्यों में अश्वगंधा के अलग अलग स्थानीय नाम हैं, जो इस प्रकार से हैं।

  • हिंदी में इसे अशगंध, असगंध, अजगंधा, नागौरी असगंध, रसभरी इत्यादि नामों से जाना जाता है।
  • तमिल में इसे  अमुकरा, अमुकिरा, असुरगंडी नामों से जाना जाता है।
  • मलयालम में अमुक्कुरम, त्रित्तवु, आयमोदकम नामों से।
  • बंगाली में अश्वगंधा को धुप्पा कहा जाता है।
  • कन्नड़ में केरामाद्दीनगद्दी, कांचुकी इत्यादि।
  • मराठी में अस्कंधा, दोरगंज, घोड़ा, टिल्ली नामों से जाना जाता है।
  • गुजराती में  असोद, घोड़ा अहन, घोड़ा अकान, असुन, आसम, घोडासोड़ा आदि।
  • तेलुगु में अश्वगंधा को  पेनेरु, वाजीगंधा नामों से भी जाना जाता है।  

अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त किश्में

भारत में उच्च उपज देने वाली अश्वगंधा की कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार से हैं।

अश्वगंधा की किस्म बीज उपज
जवाहर असगंद-20प्रति हेक्टेयर में 5-6 क्विंटल सूखी जड़
जवाहर असगंद-134प्रति हेक्टेयर में 6-8 क्विंटल सूखी जड़
राज विजय अश्वगंधा – 100प्रति हेक्टेयर में 6-7 क्विंटल सूखी जड़

एक आंकड़े के मुताबिक एक हेक्टेयर भूमि में अश्वगंधा की खेती के लिए लगभग 10-12 किलो बीज पर्याप्त होता है। इसकी बुआई पंक्ति बनाकर की जानी चाहिए।

अश्वगंधा की खेती के लिए आवश्यक जलवायु

एक जानकारी के मुताबिक समुद्रतल से 1500 मीटर की ऊंचाई तक अश्वगंधा की खेती की जा सकती है। और ऐसे अर्ध-उष्णकटिबंधीय क्षेत्र जहाँ 500 से 800 मिमी वर्षा प्रति वर्ष होती हैं, इस खेती के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। अश्वगंधा की फसल को इसके बढ़ते समय के दौरान शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।

उस समय इस फसल के लिए 20 डिग्री सेल्सियस से 38 डिग्री सेल्सियस का तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है। यद्यपि अश्वगंधा की खेती 10°C तक के न्यूनतम तापमान को सहन करने में भी सक्षम है । इस तरह की खेती के लिए रेतीली दोमट, या हल्की लाल मिटटी को को उपयुक्त माना जाता है।

अश्वगंधा की खेती के लिए भूमि की तैयारी

जिस खेत में अश्वगंधा की खेती करने की योजना हो उस खेत को अच्छी तरह से जोत लिया जाता है। मिटटी को बारीक और समान करने के लिए दो से तीन बार जुताई की जानी चाहिए, और यह सब बारीश के मौसम से पहले किया जाना चाहिए ।

अच्छी तरह से तैयार खेत की मिटटी को खाद के साथ मिलाना भी फसल की उपज के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। अश्वगंधा की खेती आम तौर पर उन खेतों में की जाती है, जहाँ पर उपयुक्त सिंचाई व्यवस्था न हो।

पौधारोपण

अश्वगंधा की खेती की शुरुआत में पौंधों का रोपण नहीं किया जाता, बल्कि इसके बीज की बुवाई की जाती है। इस प्रक्रिया में स्वस्थ और उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों का चुनाव किया जाता है, और फिर उन बीजों को नर्सरी की क्यारियों में बोया जाता है । हालांकि मुख्य खेत में इसे सीधे बुवाई के माध्यम से भी बोया जा सकता है, लेकिन बेहतर गुणवत्ता और उपज के लिए रोपाई विधि को प्राथमिकता दी जाती है, ताकि उनका बाहरी देशों की ओर निर्यात भी किया जा सके ।

नर्सरी क्यारी को खाद और मिटटी के साथ अच्छी तरह से तैयार किया जाता है, और इसे जून जुलाई महीनों में उगाया जाना चाहिए। अश्वगंधा के बीजों को मानसून की शुरुआत होने से पहले बोया जाना चाहिए, आम तौर पर इसके बीज छह से सात दिनों में अंकुरित हो जाते हैं। और मुख्य खेत में 35-40 दिन पुराने पौधों का रोपण किया जाता है।

अश्वगंधा की खेती के लिए खाद और पानी              

अश्वगंधा की खेती के लिए फार्म यार्ड मेन्योर (FYM), वर्मीकम्पोस्ट और हरी खाद सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं। आम तौर पर एक हेक्टेयर जमीन पर अश्वगंधा की खेती करने के लिए लगभग 10 से 12 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद या फिर 1 से 1.5 टन वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है।

जहाँ तक सिंचाई की बात है, अश्वगंधा की फसल को अत्यधिक सिंचाई या जलभराव नुकसान पहुंचा सकता है। केवल जब पौंधों का रोपण किया जा रहा हो, तब हल्की सिंचाई प्रदान करने से पौंधों की जमीन पर स्थापना सुनिश्चित की जा सकती है। जड़ की उपज अच्छी हो इसके लिए 8-10 दिनों में एक बार सिंचाई करना पर्याप्त होता है।  

खरपतवार कीट और रोग नियंत्रण

अश्वगंधा की खेती के शुरूआती दौर में एक हाथ से निराई करना खरपतवार के विकास को नियंत्रित करने में सहायक होता है। इस फसल को आम तौर पर खरपतवारों से दूर रखने के लिए दो बार निराई की आवश्यकता होती है। पहली निराई को बुवाई के 21-25 दिनों के अन्दर अन्दर किया जा सकता है, और दूसरी निराई और पहली निराई के बीच 21-25 दिनों का अंतर होना चाहिए। इस प्रकार से अश्वगंधा की खेती में खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है।

अश्वगंधा की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों और रोगों में एफिड्स, माइट्स, कीड़ों का हमला, अंकुर सड़ना और झुलसाना इत्यादि हैं। हालांकि अश्वगंधा अधिकतर कीटों और रोगों के नुकसान से मुक्त होता है। लेकिन उपर्युक्त बताये गए कीटों और रोगों के नियंत्रण के लिए रोगमुक्त बीजों का चुनाव करना, बीजों को बोने से पहले उनका उपचार करना आवश्यक होता है। अश्वगंधा की खेती को रोगों से बचाने के लिए नीम, चित्रमूल, धतूरा, गोमूत्र इत्यादि से निर्मित जैव कीटनाशक तैयार किये जा सकते हैं।

अश्वगंधा की कटाई कब और कैसे की जाती है

अश्वगंधा की पत्तियाँ जब सूख जाती है और इसका फल लाल नारंगी हो जाता है, तो यह निशानी होती है की अश्वगंधा की खेती अब पूरी तरह से परिपक्व हो चुकी है, जिसकी अब कटाई का समय आ गया है। आम तौर पर अश्वगंधा की फसल बुवाई के 165-180 दिनों के भीतर भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

कटाई के दौरान अश्वगंधा के पौधे को जड़ सहित ही पूरी तरह उखाड़ लिया जाता है, उसके बाद पौंधे का उपरी हिस्सा जिसमें पत्तियाँ और फल लगे होते हैं, उसे अलग कर दिया जाता है। जड़ से शुरू करके 1 से 2 सेमी तने को को भी काटा जाता है। फिर जड़ और तने को 8-10 सेमी के टुकड़ों में काटा जाता है। उसके बाद इन्हें सुखाया जाता है ।

अश्वगंधा की उपज और मार्केटिंग    

अश्वगंधा की खेती से होने वाली उपज मिटटी की उर्वरता, कृषि प्रबंधन, सिंचाई व्यवस्था, पानी की निकासी व्यवस्था इत्यादि जैसे कई कारकों पर निर्भर करती है। औसतन देखा जाय तो एक हेक्टेयर भूमि में अश्वगंधा की खेती करने पर लगभग 450 से 500 किग्रा अश्वगंधा की जड़ और 50 किलोग्राम तक बीज प्राप्त किया जा सकता है।

मार्केटिंग की बात करें तो कई राज्यों में कुछ ऐसे बाजार हैं जो अश्वगंधा के लिए मशहूर हैं । इनमें मध्य प्रदेश के नीमच और मंदसौर भी ऐसी जगह हैं, जहाँ अश्वगंधा के लिए अच्छी मार्किट उपलब्ध है। अश्वगंधा की जड़ों को खरीदने के लिए कई औषधि निर्माण पर आधारित कम्पनियां इत्यादि इन बाज़ारों का दौरा करती रहती हैं। वैसे यदि अश्वगंधा की खेती करने से पहले ही किसान या उद्यमी किसी आयुर्वेदिक या हर्बल दवाइयां बनाने वाली कंपनी से गठजोड़ कर लेता है, तो यह बेहद लाभकारी और तनावमुक्त प्रक्रिया साबित हो सकती है।  

अश्वगंधा की खेती से होने वाली अनुमानित कमाई  

मान लेते हैं की अश्वगंधा की जड़ की कीमत 270 रूपये प्रति किलो है। और अश्वगंधा के बीज की कीमत 150 रूपये प्रति किलो है। यदि एक हेक्टेयर भूमि में 450 किग्रा जड़ होती है, तो इस हिसाब से कुल उत्पादित जड़ की कीमत 270×450= 121,500 रूपये होगी और एक हेक्टेयर भूमि से 50 किलो बीज का उत्पादन होने की स्थिति में बीज की कीमत 50×150=7500 होगी। तो एक हेक्टेयर भूमि से लगभग 129,000 रूपये की आय हो सकती है। यह केवल उदाहरण मात्र है, असली आय अश्वगंधा की कीमत और उत्पादन के आधार पर अंतरित हो सकती है।

प्रश्नोत्तर/ FAQ on Ashwgandha Farming   

प्रश्न – भारत में अश्वगंधा की खेती के लिए अच्छी किस्में कौन सी हैं?

उत्तर – जवाहर असगंद-20, जवाहर असगंद-134 और राज विजय अश्वगंधा – 100 उन्नत किस्में हैं ।

प्रश्न – अश्वगंधा को कहाँ और कैसे बेचें?

उत्तर – अश्वगंधा की जड़ों, बीजों इत्यादि का उपयोग अनेकों औषधि निर्माण में किया जाता है। इसलिए औषधि निर्माण करने वाली कम्पनियां इसकी ग्राहक हैं। और इसे विदेशी बाज़ारों की ओर निर्यात भी किया जा सकता है ।

प्रश्न – अश्वगंधा की फसल कितने दिनों में तैयार होती है?

उत्तर – अश्वगंधा की फसल बुवाई के 165 से 180 दिनों के बीच तैयार हो जाती है।

प्रश्न – अश्वगंधा की खेती से कितनी कमाई हो सकती है?

उत्तर – इस लेख में दिए गए उदाहरण में प्रति हेक्टेयर भूमि में अनुमानित कमाई 1.3 लाख रूपये होने की संभावना जताई गई है ।

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