राजकोषीय घाटा क्या होता है इसे कैसे संतुलित किया जाता है।

राजकोषीय घाटा आम तौर पर राजस्व घाटे या फिर पूंजीगत खर्चों में बढ़ोत्तरी के कारण होता है। पूँजीगत खर्चों से आशय उन खर्चों से है, जो सरकार द्वारा, सड़कें, कारखाने, भवन, फ्लाईओवर, स्कूल, मेडिकल कॉलेज जैसे अन्य दीर्घकालीक सम्पतियों को बनाने में खर्च किया जाता है।

आम तौर पर राजकोषीय घाटे को वित्तपोषित करने के लिए कई कदम जैसे केन्द्रीय बैंक से ऋण लेना, ट्रेजरी बिल, बांड और अन्य उपकरण जारी करके पूँजी बाज़ार से धन एकत्रित करके किया जाता है।

राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit kya hota hai):

सरकार के कुल राजस्व और कुल खर्चों के बीच के अंतर को ही राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) कहते हैं। यह सरकार द्वारा आवश्यक कुल ऋण का एक संकेत होता है। जब सरकार के कुल राजस्व की गणना की जाती है तो, उसमें ऋण शामिल नहीं होते हैं।

कहने का आशय है की राजकोषीय घाटा किसी एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा प्राप्त किया गया कुल राजस्व और सरकार द्वारा खर्चा किया गया कुल व्यय के बीच के अंतर को कहते हैं।

जब किसी वित्तीय वर्ष में सरकार का कुल खर्चा उसके कुल अर्जित राजस्व से अधिक होता है, तो तब राजकोषीय घाटा उत्पन्न होता है।

सरकार का वित्त प्रबंधन किस प्रकार से चल रहा है, राजकोषीय घाटा उसके संकेतक के रूप में कार्य करता है।

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राजकोषीय घाटे की गणना (Calculation of Fiscal Deficit):

राजकोषीय घाटे की गणना करना बेहद आसान है। किसी वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा प्राप्त कुल राजस्व को उसी वित्तीय वर्ष में किये गए कुल खर्चों से घटा दिया जाता है। यदि खर्चे राजस्व से अधिक हों, तो राजकोषीय घाटा होगा, राजस्व अधिक होने की स्थिति में यह नहीं होगा।

गणितीय रूप से इसकी गणना के लिए निम्न सूत्र का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राजकोषीय घाटा = कुल खर्चा – कुल राजस्व (जिसमें ऋण शामिल नहीं है)  

राजकोषीय घाटे की गणना लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं में की जाती है। यदि पूँजीगत व्यय बढ़ने की वजह से यानिकी रेल लाइन, सड़कें, फ्लाईओवर, स्कूल, हॉस्पिटल, एअरपोर्ट इत्यादि बनाने के कारण राजकोषीय घाटा हो रहा है, तो यह बुरा नहीं है। क्योंकि भविष्य में सरकार इन्हीं से राजस्व पैदा करने में सक्षम होगी।

राजकोषीय घाटे के अवयव

राजकोषीय घाटे की बात करें तो यह प्रमुख रूप से दो अवयवों आय और व्यय से बना है। आय यानिकी जिन स्रोतों के माध्यम से सरकार राजस्व इकट्ठा करती है। व्यय यानिकी जिन कामों पर सरकार खर्चा करती है।

सरकार की कुल आय के अवयव

सरकार की होने वाली कमाई को कर और गैर कर राजस्व में विभाजित किया जा सकता है। कर श्रेणी में जीएसटी, केंद्र शाषित प्रदेशों में वसूला जाने वाला टैक्स, सीमा शुल्क, कारपोरेशन टैक्स इत्यादि शामिल हैं। गैर कर राजस्व की श्रेणी में लाभ, लाभांश, प्राप्तियाँ और ब्याज शामिल हैं।

व्यय के अवयव

सरकार को कई तरह की परियोजनाओं को पूर्ण करने और काम करने के लिए खर्चा करना पड़ता है। इसमें राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय दोनों शामिल हैं। खर्चों के घटक में वेतन, पेंशन का भुगतान, बुनियादी ढाँचे का विनिर्माण, अनुदान, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, ब्याज का भुगतान इत्यादि शामिल हैं।

राजकोषीय घाटे को कैसे संतुलित किया जाता है              

सरकारें बांड जारी करने के तौर पर उधार लेती हैं, और इन्हें बैंकों के माध्यम से बेचती हैं । बैंक सरकार से इनको खरीदते हैं और निवेशकों को बेचते हैं। सरकार द्वारा जारी किये गए बांड निवेश के सुरक्षित तरीकों में से एक है । इसलिए इनमें निवेश करना पूरी तरह जोखिम से मुक्त होता है, और लोग ऐसे सुरक्षित निवेश की तरफ जल्दी आकर्षित होते हैं।

राजकोषीय घाटे की भरपाई के लिए सरकार मानव कल्याण को ध्यान में रखते हुए कभी भी जनता पर करों का बोझ डालने से झिझकती है। लेकिन यदि राजकोषीय घाटा पूँजीगत सम्पतियों के निर्माण के कारण हो रहा होता है, तो यह अर्थव्यवस्था के लिए बुरा नहीं होता है। क्योंकि बाद में यही पूँजीगत सम्पतियाँ सरकार के राजस्व यानिकी कमाई का जरिया बनती हैं।     

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