एमडीएच के संस्थापक महाशय धर्मपाल की संघर्ष और सफलता की कहानी।

यदि हम मसाला उद्योग की बात करें तो, एमडीएच यानिकी महासियन दी हट्टी किसी परिचय का मोहताज इसलिए नहीं है । क्योकि भारतवर्ष के हर रसोईघर में MDH का कोई न कोई मसाला मिल ही जायेगा । और Mahashian Di Hatti (MDH) को मसाला बिजनेस उद्योग की दुनिया में श्रेष्ठतम स्तिथि में पहुँचाने वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी के बारे में अनेकों कथाएं कहानिया हर तरह की मीडिया में प्रचलित हैं । आज हम हमारे पढ़ने वालों को महाशय धर्मपाल गुलाटी और उनकी कंपनी एमडीएच की Success Story के बारे में बताने वाले हैं । जिससे हमारे पाठकगण उनकी Success Story से Inspiration ले सकें ।

महाशियाँ दी हट्टी एमडीएच के संस्थापक धर्मपाल गुलाटी

एमडीएच के संस्थापक महाशय धर्मपाल गुलाटी का पहले का जीवन:

महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म आज से 93 साल पहले, 27 मार्च सन 1923 ब्रिटिश इंडिया में सियालकोट (अब जो पाकिस्तान का हिस्सा है ) में हुआ था । इनके पिता का नाम महाशय चुन्नी लाल व माता का नाम माता चनन देवी था । इनके माता पिता बहुत ही परोपकारी धार्मिक विचारों के इंसान थे । वैसे यदि हम यह कहें, तो गलत नहीं होगा, की एमडीएच की शुरुआत 1919 में महाशय धर्मपाल गुलाटी  के पिताजी महाशय चुन्नी लाल के द्वारा हुई ।

लेकिन बाद में भारत पाकिस्तान के बटवारें के कारण इनको और इनके परिवार को बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । जी हाँ दोस्तों महाशय चुन्नी लाल की सियालकोट में मसालों की एक छोटी सी दुकान 1919 से हुआ करती थी । वर्ष 1933 में महाशय धर्मपाल गुलाटी ने पांचवी की परीक्षा पास करके स्कूल छोड़ दिया । और अपने पिताजी की सहायता से इन्होने विभिन्न छोटे मोटे व्यापारों जैसे दर्पण, साबुन, बढ़ईगीरी, चावल का व्यापार इत्यादि किया ।

लेकिन इन्हे ये business ज्यादा देर तक भाये  नहीं, और वे फिर से अपने खानदानी मसालों के बिज़नेस में अपने पिताजी की मदद करने लगे । कहते हैं की लोग उस समय एमडीएच को ‘’देगी मिर्च वाले’’ नामक नाम से जानते थे । लेकिन 1947 में भारत पाकिस्तान बटवारे के कारण सियालकोट पाकिस्तान में चला गया था । इसलिए इनका परिवार रिफ्यूजी कैंपो में जिंदगी गुज़र बसर करने को मजबूर था ।

महाशय धर्मपाल गुलाटी के संघर्षमय दिन (Struggle days):

कहते हैं, की हर उद्यमी को अपने उद्यम को आगे बढ़ाने हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ता है । लेकिन महाशय धर्मपाल गुलाटी को इतना बिज़नेस को बढ़ाने हेतु नहीं, बल्कि अपने परिवार के लोगों के लिए दो जून की रोटी का बंदोबस्त अर्थात उनका पेट पालने हेतु काफी संघर्ष करना पड़ा । और उनका यही संघर्ष (Struggle) हम तुम लोगो के लिए एक प्रेरणा (Inspiration) बन गया । जब महाशय जी के परिवार को यह पता चल गया की सियालकोट पाकिस्तान में चला गया है ।

तो उनका अपना घरबार छोड़ना निश्चित हो गया । इसी के चलते उनका परिवार और वे स्वयं,  7 सितमबर 1947 को अमृतसर में एक रिफ्यूजी कैंप में पहुंचे । एमडीएच के संस्थापक महाशय धर्मपाल गुलाटी के अनुसार तब उनकी उम्र लगभग 23 साल की रही होगी । उसके बाद कुछ दिन कैंप में रहने के बाद 27 सितम्बर 1947 को महाशय धर्मपाल गुलाटी ने अपने जीजा जी के साथ काम ढूंढने हेतु, दिल्ली की ओर कूच किया । और दिल्ली में वे अपनी भांजी के उस फ्लैट में रहने लगे जिसमे न तो बिजली थी, न पानी था और न ही टॉयलेट और बाथरूम था ।

महाशय धर्मपाल गुलाटी के अनुसार जब वो अपने जीजा के साथ काम ढूंढने दिल्ली की ओर आ रहे थे । तब उनके पिताजी ने उन्हें 1500 रूपये दिए थे । जिसमे से दिल्ली आके उन्होंने 650 रूपये में एक तांगा ख़रीदा । जिस तांगे को वे Connaught Place से करोल बाग के रूट पर चलाते थे । और तांगे में बैठने वाले से 2 आना शुल्क/किराया  लिया करते थे ।

इससे इतनी कम Kamai होती थी, की परिवार का भरण पोषण कर पाना मुश्किल हो रहा था । लेकिन फिर भी वो मेहनत करते रहे, फिर धीरे धीरे वो दिन भी आये जब उन्हें उनके तांगे में बैठने वाला एक व्यक्ति भी नहीं मिला । वो नियमित रूप से आते और 2 आना सवारी, 2 आना सवारी चिल्लाते, लेकिन उन्हें लोगों को अपने तांगे में बिठाने में सफलता नहीं मिली ।

उल्टा आलम यह था की लोग उन पर हँसते और मजाक उड़ाते थे । फिर उन्होंने सोचा की लोगो का इतना अपमान सहने, और इतनी मेहनत करने के बावजूद मैं अपने परिवार का पेट भरने में असमर्थ हूँ । तो क्यों न इस तांगे को छोड़कर अपना खानदानी बिज़नेस मसाला उद्योग का काम किया जाय ।

एमडीएच की दुबारा शुरुआत :

एमडीएच यानिकी महाशियाँ दी हट्टी जो कभी ब्रिटिश इंडिया में पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ करती थी । अब उसकी Starting दिल्ली से होने जा रही थी । इसके लिए महाशय धर्मपाल गुलाटी जी ने अपना तांगा बेच दिया था । और वे दिल्ली में ही एक छोटी सी मसालों की दुकान खोलने की ठान चुके थे । उसके बाद महाशय जी ने दिल्ली के करोल बाग में ही अजमल खान रोड पर, एक लकड़ी का खोखा (14×9’’) का ख़रीदा । और अपने खानदानी बिज़नेस मसालों का व्यापार शुरू कर दिया ।

उनकी सादगी, ईमानदारी और मसालों की गुणवत्ता के कारण, उनका एमडीएच नामक मसाला उद्योग चलने लगा । अब उनके सिर से अपने परिवार का पेट भरने की चिंता खत्म हो चुकी थी । यही वजह है की अब उनका पूरा ध्यान अपने बिज़नेस को विस्तृत करने में लगने लगा । और वर्ष 1953 में महाशय धर्मपाल गुलाटी ने एक दूसरी दुकान चांदनी चौक में किराए पर ली । उसके बाद वर्ष 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में एक प्लाट लेकर उसमे मसाला उद्योग स्थापित किया ।

वर्तमान में एमडीएच की स्थिति :

शायद यह बताने की जरुरत नहीं है की एमडीएच ने अपने मसालों के व्यापार के सफर में इष्टतम सफलता हासिल की है । वर्तमान में कंपनी के उत्पाद हर भारतीय रसोईघर में अपनी जगह बना चुके हैं । पिछले बहुत वर्षों से कंपनी द्वारा बाहरी देशों को भी अपने उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है । मसाला उद्योग में इष्टतम सफलता पा लेने के बाद महाशय धर्मपाल गुलाटी ने लोगो के हितों को ध्यान में रखते हुए । वर्ष 1975 में सुभाष नगर नई दिल्ली में एक 10 बेड क्षमता वाला हॉस्पिटल भी बनाया था ।

उसके बाद 1984 में दिल्ली के जनकपुरी में एक 20 क्षमता वाला हॉस्पिटल स्थापित किया । वर्तमान में इस हॉस्पिटल में 300 बेड की सुविधा होने के साथ साथ MRI, CT स्कैन, हार्ट विंग, Neuro साइंस, IVF इत्यादि की सेवाएं उपलब्ध हैं । पश्चिमी दिल्ली में इस तरह का अन्य सुपर  स्पेशलिटी हॉस्पिटल न होने के कारण, यह इस क्षेत्र में रह रहे लोगो के लिए किसी कीमती गिफ्ट या वरदान से कम नहीं है ।

इसके अलावा महाशय धर्मपाल गुलाटी जी ने बहुत सारे उच्च गुणवत्ता की शिक्षा देने वाले स्कूल और कॉलेज खोले हुए हैं । जिनमे मुख्य रूप से एमडीएच इंटरनेशनल स्कूल, महाशय चुन्नीलाल सरस्वती शिशु मंदिर, माता लीलावती कन्या विद्यालय, महाशय धर्मपाल विद्या मंदिर इत्यादि हैं । समाज के कल्याण हेतु 20 से भी अधिक स्कूलों, कॉलेजों और हॉस्पिटलों का निर्माण कर चुके महाशय धर्मपाल गुलाटी जी का कोई बिज़नेस मंत्र नहीं है । बल्कि उनका मानना है की ” आप संसार को जितना आप कर सकते हो श्रेष्ठ करके दो, और स्वतः ही यही श्रेष्ठता आपके पास वापस आ जाएगी” ।

वर्तमान में Mahasian DI Hatti (MDH) न केवल अपने गुणवत्ता वाले मसालों के लिए प्रसिद्ध है । बल्कि समाज के कल्याण हेतु उठाये गए कदम हॉस्पिटल का निर्माण, स्कूल कॉलेजों का निर्माण इत्यादि के लिए भी महाशियाँ दी हट्टी यानिकी एमडीएच एक जाना पहचाना नाम है । मसालों के इस शहनशाह का 3 दिसम्बर 2020 को 97 साल की उम्र में निधन हो गया। लेकिन उनके द्वारा किया गया संघर्ष और प्राप्त सफलता हमेशा दुसरे लोगों को प्रेरणा देती रहेगी।  

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