अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं । Economy की परिभाषा, प्रकार, विशेषताएँ।

जब भी हम किसी राष्ट्र की तरक्की की बात करते हैं, तो उस दौरान उसकी अर्थव्यवस्था या Economy की बात भी अवश्य करते हैं। वह इसलिए क्योंकि किसी भी राज्य/राष्ट्र की तरक्की में उसकी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

साधारण बोलचाल में हम कह भी देते हैं, की उसकी अर्थव्यवस्था अच्छी और मजबूत है, और किसी अन्य देश की कमजोर है। लेकिन क्या वास्तव में हम इसका अर्थ जानते हैं? क्या हम यह जानते हैं की अर्थव्यवस्था की परिभाषा क्या होती है? और जब हम इसका आकलन करते हैं, तो उनमें किन किन घटकों को शामिल करना होता है।

अधिकतर लोग शायद अर्थव्यवस्था के बारे में इतनी गहरी जानकारी नहीं रखते होंगे। सिर्फ वे कुछ विद्यार्थी जिनको उनकी परीक्षा पास करने की मजबूरी के चलते इसके बारे में पढ़ना होगा। हो सकता है की वे अर्थव्यवस्था के बारे में थोड़े अच्छे ढंग से जानकारी रखते हों।

हमारा यह आज का लेख अर्थव्यवस्था  पर ही केन्द्रित है। इसमें अर्थव्यवस्था की परिभाषा से लेकर इसके प्रकार इत्यादि के बारे में बेहद आसान और व्यवहारिक शब्दों में जानने की कोशिश करेंगे।

economy kya hai
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क्या होती है अर्थव्यवस्था (Economy Ki Paribhasha):

वैसे देखा जाय तो अर्थव्यवस्था में अर्थ का मतलब धन और व्यवस्था का मतलब प्रबंध से लगाया जाता है। शाब्दिक तौर पर हम देखें तो धन का प्रबंध ही अर्थव्यवस्था कहलाती है। लेकिन यहाँ पर समझने वाली बात यह है की यह क्षेत्र आधारित होती है, यानिकी भारत की अर्थव्यवस्था अलग तो अन्य देशों की अर्थव्यवस्था अलग होगी।

एक देश अपनी सीमा के भीतर उपलब्ध संसाधनों का दोहन किस प्रकार से करता है, यह उस देश की इकॉनमी के लिए महत्वपूर्ण होता है। अर्थव्यवस्था में वे सारे घटक शामिल होते हैं, जिनके तहत कोई देश अपने पास उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करके वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और उनका उपभोग करता है।

इसमें उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता भी शामिल है, क्योंकि गुणवत्तापूर्ण वस्तुएं किसी भी देश को अधिक पैसा बनाने में मदद करती हैं। ध्यान रहे की किसी देश की अर्थव्यवस्था में केवल उत्पादित वस्तुएं या सेवाएं ही शामिल नहीं होती। बल्कि इनके उत्पादन से लेकर इनके उपभोग तक जो भी चीजें व्यक्ति/संगठन इत्यादि इसमें शामिल होते हैं। वे सभी उस देश की अर्थव्यवस्था का हिस्सा होते हैं।

अर्थव्यवस्था के प्रकार (Types of Economy in Hindi):

दुनिया में चार तरह की आर्थिक प्रणालियों को अपनाया जाता है, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न है।

पारम्परिक अर्थव्यवस्था (Traditional Economy):

इस आर्थिक प्रणाली के तहत जरुरी विशेषताओं को बरकरार रखा जाता है, ताकि इसमें विशेषज्ञता और श्रम विभाजन बेहद कम हो। इस तरह की प्रणाली उन देशों में अपनाई जाती है, जहाँ शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र अधिक हों, और उनके मुख्य व्यवसाय में खेती शामिल हो।

समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialist Economy)

इसे समाजवादी अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है , इसमें सरकार के रूप में एक केन्द्रीयकृत प्रमुख अथॉरिटी होती है। इस तरह की यह अर्थव्यवस्था आम तौर पर सरकार के नियंत्रण में होती है। इसमें सरकार अकेली ऐसी अथॉरिटी होती है जिसके पास उत्पादन और आवंटन का निर्णय लेने का अधिकार होता है। यह जनता के हितों को ध्यान में रखकर निर्णय लेते हैं ।  

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy)

इस तरह की अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप बेहद कम होते हैं, यह अर्थव्यवस्था  मुक्त बाज़ार के सिद्धांत पर कार्य करती है। इस तरह की अर्थव्यवस्था में बाज़ार की शक्ति ही माँग और आपूर्ति को नियंत्रित करती है।

लेकिन इसमें निजी क्षेत्र का एकाधिकार न व्याप्त हो, इसके लिए सरकारी हस्तक्षेप की भी आवश्यकता पड़ती है।

मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)

एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में दोनों प्रणालियों समाजवादी और पूंजीवादी का मिश्रण होता है। यही कारण है की इस तरह की इकॉनमी को दोहरी अर्थव्यवस्था के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में देखें तो अधिकतर देशों में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के संगठनों को काम और व्यापार करने की पूर्ण अनुमति है। इसलिए कहा जा सकता है की अधिकतर देशों द्वारा मिश्रित अर्थव्यवस्था अपनाई जा रही है।

अर्थव्यवस्था के प्रकारों में अंतर  

अर्थव्यवस्था के प्रकारों में निम्न अंतर हैं।

मापदंड पूंजीवादी अर्थव्यवस्था समाजवादी अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था
कीमतों का निर्धारण बाज़ार में उपलब्ध माँग और आपूर्ति कीमतों का निर्धारण करती है।केन्द्रीय अथॉरिटी आम तौर पर सरकार वस्तुओं और सेवाओं की कीमत निर्धारित करती है।इस Economy में सरकार के दिशानिर्देशों और बाज़ार में उपलब्ध माँग और आपूर्ति को ध्यान में रखकर कीमतों का निर्धारण किया जाता है।
सम्पति का स्वामित्व इसमें निजी क्षेत्रों के हाथ में स्वामित्व होता है।सार्वजनिक क्षेत्र के हाथों में स्वामित्व होता है।इसमें निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के हाथों में स्वामित्व होता है।
उत्पादन इसमें उत्पादन केवल लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जाता है।इसमें उत्पादन का उद्देश सामजिक कल्याण होता है।इसमें लाभ कमाना और समाज कल्याण दोनों शामिल हैं ।
प्रतिस्पर्धा बाज़ार में उपलब्ध इकाइयों के बीच घोर प्रतिस्पर्धा होती है।इस अर्थव्यवस्था में इकाइयों के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती है।निजी क्षेत्र की इकाइयों में प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है।
सरकारी हस्तक्षेप सरकार का बेहद कम हस्तक्षेप होता है।इस Economy को पूरी तरह से सरकार नियंत्रित करती है। इसलिए सरकारी हस्तक्षेप बहुत ज्यादा होता है।  सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकारी हस्तक्षेप अधिक होता है। जबकि निजी क्षेत्र की इकाइयों में कम।  

अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्षेत्र ( Economic Sector in economy)

अर्थव्यवस्था में उपलब्ध आर्थिक क्षेत्रों को निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।

प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector):

प्राथमिक क्षेत्र में ऐसे घटक शामिल हैं, जिनका पर्यावरण या प्रकृति से सीधा सम्बन्ध होता है। अर्थात अर्थव्यवस्था में शामिल इन उत्पादों का उत्पादन सीधे प्रकृति या पर्यावरण की मदद से किया जा सकता है। इनमें कृषि, विभिन्न प्रकार की फार्मिंग, खनन, मछली पकड़ने की गतिविधि इत्यादि शामिल हैं।

इस क्षेत्र के तहत उत्पादों की कटाई और निष्कर्षण बुनियादी खाद्य पदार्थों केलिए करना या कच्चे माल के लिए करना शामिल है। किसी भी अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र का उद्देश्य प्रकृति प्रद्दत संसाधनों का इष्टतम उपयोग करना शामिल है।

द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector)

इस क्षेत्र के तहत कच्चे माल को नए उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है, जिनका या तो उपभोग किया जा सकता है या फिर उन्हें बेचा जा सकता है। कच्चे माल को नए उत्पादों में परिवर्तित करने से अर्थव्यवस्था को आदिम आर्थिक प्रणाली से निजात दिलाने में मदद मिल सकती है।

भारत में अर्थव्यवस्था का द्वितीयक क्षेत्र कुल अर्थव्यवस्था में 20% की साझेदारी करता है। और यह भारत में एक बड़ी आबादी को रोजगार प्रदान करने में भी सहायक है।

तृतीय क्षेत्र (Tertiary Sector)

अर्थव्यवस्था में यह क्षेत्र प्रमुख रूप से सर्विस सेक्टर यानिकी सेवा क्षेत्र को कवर करता है। तृतीयक क्षेत्र के सबसे अच्छे उदाहरणों में बैंकिंग, बीमा, परिवहन, संचार, स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षा इत्यादि शामिल हैं। चूँकि वर्तमान में बुनियादी आवश्यकताओं में तकनिकी विकास बड़ी तीव्र गति से हो रहा है, जिससे अब अर्थव्यवस्था में तृतीयक क्षेत्र का भी महत्व बढ़ने लगा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ (Features of Indian Economy in Hindi):

भारत एक विकासशील देश है, और यह मिश्रित अर्थव्यवस्था के साथ लगातार आगे बढ़ने को प्रयासरत है। वर्ष 1991 में किये गए सुधारों की बदौलत हमारा देश की अर्थव्यवस्था विकसित होने की दौड़ में शामिल है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

प्रति व्यक्ति आय का कम होना

भारतीय अर्थव्यवस्था की पहली विशेषता यह है की विकसित देशों की तुलना में भारत की प्रति व्यक्ति आय बेहद कम है। वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार भारत की प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय 93231 रूपये थी।

कृषि आधारित अर्थव्यवस्था

एक आंकड़े के मुताबिक भारत की कुल जीडीपी में लगभग 14.2% हिस्सेदारी कृषि और उसे सम्बंधित क्षेत्रों की है। यानिकी भारतीय अर्थव्यवस्था में जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा कृषि और उससे सम्बंधित गतिविधियों से प्राप्त किया जाता है।

इसके अलावा भारत की कुल जनसँख्या का लगभग 53% जनसँख्या ऐसी है जो कृषि और उससे सम्बंधित कार्यों पर निर्भर है। इसलिए भारतीय इकॉनमी  को कृषि आधारित अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

जनसँख्या का अधिक होना

भारतीय अर्थव्यवस्था पर जनसँख्या का भार बहुत अधिक है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में हर दस सालों में लगभग 20% जनसँख्या बढ़ जाती है। जो की एक अच्छी अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय हो सकता है। भारत में विश्व की कुल जनसँख्या का 17.5% जनसँख्या निवास करती है।

आय में असमानता

यद्यपि भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था का अनुसरण किया जाता है। इसलिए यहाँ पर कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता, कौशल के हिसाब से धन कमा सकता है। लेकिन भारत में लोगों की आय में बहुत अधिक असमानता है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में केवल 1% लोगों के पास 53% से भी अधिक की सम्पति है। बाकी बचे 47% सम्पति पर देश की 99% जनता का भार है।

खराब ढांचागत विकास

बिजली, पानी, आवास, सड़कें इत्यादि बुनियादी सुविधाएँ हैं। लेकिन एक अध्यन में पाया गया की भारत में लगभग 25% लोग अभी भी बिजली के अभाव में जी रहे हैं, 97 मिलियन लोग ऐसे हैं जिनके पास पीने के पानी की कमी है। बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिनकी पहुँच स्वच्छता सेवाओं तक नहीं है ।

पूर्ण बाज़ार का न होना

भारतीय अर्थव्यवस्था  की अगली विशेषता अपूर्ण बाज़ार है, यहाँ पर एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाने के लिए सड़कें, रेलवे लाइन, हवाई अड्डों इत्यादि की कमी है। जिससे देश में उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग नहीं हो पाता है।

समाज का पिछड़ापन

भारतीय इकॉनमी  में कुछ ऐसी प्रमुख बाधाएँ हैं जो इसकी विशेषताएँ भी हैं। पुरुष प्रधान समाज (अब धीरे धीरे इसमें सुधार हो रहा है), साम्प्रदायिकता, जाति व्यवस्था इत्यादि।

यद्यपि अब धीरे धीरे समाज का नजरिया इनके प्रति बदल रहा है, लेकिन अभी भी इसमें काफी समय लग सकता है ।

भारतीय अर्थव्यवस्था में भले ही कई नकरात्मक पहलू शामिल है, लेकिन इसमें कई सकारात्मक पहलू भी शामिल हैं, जो भारतीय Economy को विकास रुपी दौड़ में निरन्तर बने रहने में मददगार हैं । सरकार द्वारा शुरू की गई मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसी कई योजनाओं की मदद से एक बेहतर आर्थिक संरचना की परिकल्पना की जा सकती है।  

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