जैसा की हम सब जानते हैं विभिन्न कमाई करने स्रोतों में शेयर बाजार भी एक अहम् स्रोत है जिसकी बदौलत बहुत सारे लोगों ने अकूत सम्पति हासिल की है, तो बहुत सारे लोगों ने बहुत कुछ गंवाया भी है | शेयर बाजार में निवेश करने के विभिन्न तरीके हैं इसलिए अलग अलग निवेशकों द्वारा अलग अलग निवेश के तरीके ही अपनाये जाते रहे हैं | कहने का आशय यह है की छोटे निवेशकों, बड़े निवेशकों एवं फंड मैनेजर इत्यादि द्वारा शेयरों को चुनने का अपना अपना तरीका अपनाया जाता रहा है |
और इनका यही तरीका आगे चलकर निवेश सम्बन्धी निर्णय एवं उससे मिली सफलता के कारण एक ट्रेंड के रूप में स्थापित हो जाता है, फिर सभी लोगों को लगता है की शेयर बाजार में निवेश करने का जो तरीका उस सफलतम व्यक्ति ने अपनाया है वह भी वही तरीका अपनाएं ताकि वे अपनी अधिक से अधिक कमाई कर पाने में सक्षम हों | हम यहाँ पर आदरणीय पाठक गणों को बताना चाहेंगे की शेयर बाजार में निवेश करने के लिए स्टॉक के चयन का भी एक विशेष तरीका होता है |
बाजार से कमाई करने वाले दिग्गज खिलाड़ियों एवं फंड मैनेजर इत्यादि का निवेश करने का अपना अलग अलग स्टाइल होता है कुछ निवेशकों द्वारा सिर्फ उन शेयरों पर पैसा लगाया जाता है जो तेजी से बढ़ते रहते हैं | तो कुछ निवेशकों द्वारा वैल्यू स्टॉक को प्राथमिकता दिया जाना देखा गया है |
शेयर बाजार में निवेश करने वाले निवेशक के लिए यह जानना बेहद जरुरी है की विभिन्न शेयरों में कौन से शेयर किस तरह का प्रदर्शन करते हैं और इन शेयरों से कमाई करने के लिए निवेशक को कौन सा तरीका अपनाना होगा | आइये जानते हैं शेयर बाजार में निवेश करने के कुछ प्रचलित तरीकों के बारे में |

1. शेयर बाजार में निवेश का पहला प्रचलित तरीका ग्रोथ स्टॉक:
ग्रोथ स्टॉक नामक इस तरीके के अंतर्गत निवेशकों द्वारा निवेश के लिए उन शेयरों का चुनाव किया जाता है जिनमे अन्य शेयरों के मुकाबले तेजी से आगे बढ़ने की संभावना अधिक हो | तेजी से बढ़ते हुए क्षेत्र को इमर्जिंग एरिया कहा जाता है इसलिए यदि स्टॉक ऐसे क्षेत्र से सम्बंधित हो तो उसमे ग्रोथ की अधिक संभावना होती है |
शेयर बाजार में निवेश करने वाले निवेशक इस तरह के स्टॉक की पहचान कर लेते हैं इसके अलावा कुछ निवेशक इमर्जिंग सेक्टर की पहचान करके उस सेक्टर में तेजी से बढ़ रही कम्पनियों का चयन करके भी उनमें निवेश करते हैं | निवेशकों का मानना यह होता है की ग्रोथ स्टॉक में निवेश करके वह अपनी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं | ग्रोथ स्टॉक का चयन करते समय यह देखना होता है की उन विशेष अर्थात चयनित शेयरों की बाकी कंपनी के शेयरों के मुकाबले कमाई करने की क्षमता अर्थात अर्निंग ग्रोथ कितनी अधिक है |
जहाँ पर ग्रोथ कंपनियों के परखने की बात आती है तो इसका बेहद सरल तरीका यह होता है की निवेशक उनके बिक्री एवं मुनाफे के आंकड़े पर नज़र डालेगा तो उसे ये आंकड़े बढ़ते हुए दिखाई देंगे | और इसी कारणवश यह अन्य कंपनियों के मुकाबले अधिक कमाई करने की अर्थात लाभ प्रदान कराने की क्षमता रखती हैं | ग्रोथ स्टॉक सेंसेक्स की गति एवं बाजार पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले कारकों से भी अनछुए रहते हैं अर्थात इन स्थितियों का भी इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है |
शायद यही कारण है की ग्रोथ स्टॉक्स को कुछ अलग ही नजरिये से देखा जाता रहा है | शेयर बाजार में निवेश करने वाले निवेशकों में यह मान्यता व्याप्त है की ग्रोथ स्टॉक्स की वैल्यू अलग ही तरीकों से आंकी जाती है इसलिए ये वैल्यूएशन में भी भाग लेते हैं | यहाँ तक की निवेशक इस तरह के स्टॉक्स में उच्च कीमत अदा करने से भी पीछे नहीं हटते हैं |
शेयर बाजार में निवेश का यह तरीका बेहद प्रचलित एवं लोकप्रिय इसलिए है क्योंकि अधिकतर निवेशक हमेशा यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं की उनके पोर्टफोलियो में जितने भी शेयर हों उनकी कीमत भविष्य में अवश्य बढे |
2. शेयर बाजार में निवेश का दूसरा तरीका वैल्यू स्टॉक:
शेयर बाजार में बहुत सारे फंड मैनेजर वैल्यू इन्वेस्टिग के तरीके को अपनाकर निवेश करते हैं | वैल्यू स्टॉक नामक यह तरीका ग्रोथ स्टॉक नामक तरीके से पूरी तरह से पृथक है | वैल्यू स्टॉक नामक शेयर बाजार में निवेश करने के इस तरीके में उन शेयरों का चुनाव किया जाता है. जिनका तात्कालिक मार्केट प्राइस अपेक्षाकृत कम हो |
इस तरह के शेयरों में निवेश करके तब कमाई की जाती है जब ये कंपनी की आंतरिक मजबूती से अपना वास्तविक मूल्य प्राप्त कर लेने में सक्षम हो जाते हैं | शेयर बाजार में इस तरह के अंडर वैल्यूड स्टॉक की पहचान करने के विभिन्न तरीके होते हैं जिन्हें अपनाकर इनकी पहचान कर पाने में सरलता होती है |
यदि किसी शेयर का प्राइस अर्निंग रेशियो कम है तो वह इस बात का सूचक है की या स्टॉक अंडर वैल्यूड है इसके अलावा कंपनी के कैश फ्लो से भी इस बात का पता लगाया जा सकता है की स्टॉक अंडर वैल्यूड है या नहीं | इन सबके अलावा कंपनी के नकदी प्रवाह एवं डिस्काउंटेड फ्यूचर अर्निंग को प्राइस अर्निंग रेशियो के सापेक्ष में समझकर भी अंडर वैल्यूड शेयरों की पहचान की जा सकती है |
जिन शेयरों की कीमत औसत से भी कम तथा डिविडेंड यील्ड अधिक होता है उन्हें भी अंडर वैल्यूड शेयरों का सूचकांक के तौर पर देखा जा सकता है | इसके अलावा शेयर बाजार में निवेश का यह तरीका अपनाने से पहले इससे जुड़े शेयरों का गुणात्मक विश्लेषण भी बेहद जरुरी होता है | वैल्यू स्टॉक नामक इस तरीके में अच्छे परिणाम अर्थात लाभ कमाने में समय लग सकता है क्योंकि इस तरीके में यह कहना मुश्किल होता है की कौन सा शेयर कब अपने वास्तविक मूल्य को प्राप्त कर लेगा |
बहुत बार तो ऐसे परिणाम आने में कई सालों तक कम समय लग सकता है इसलिए जो निवेशक लम्बे समय के लिए निवेश करने के इच्छुक होते हैं उनके लिए वैल्यू स्टॉक नामक निवेश का यह तरीका उचित हो सकता है |
3. मोमेंटम इन्वेस्टमेंट स्टाइल:
शेयर बाजार में निवेश करने का यह तरीका ऐसे निवेशकों के लिए है जो निवेशक निवेश पर शीघ्र लाभ प्राप्त करना चाहते हैं | इसके तहत उन स्टॉक्स अर्थात शेयर का चयन किया जाता है जो बाजार में तेजी से बढती हैं | इसके अंतर्गत कई कंपनियों में नाटकीय रूप से वृद्धि होती है उनका प्राइस अर्निंग रेशियो बहुत ऊँचा होता है तथा बाजार में उनके स्टॉक्स का आकार काफी ज्यादा होता है |
इस प्रकार की ये कंपनिया जब बाजार में आशा से अधिक वृद्धि करने लगती हैं तो तब लाभ उठाने के लिए इन कंपनियों के शेयरों में किया जाने वाला निवेश मोमेंटम इन्वेस्टमेंट कहलाता है |
ग्रोथ इन्वेस्टमेंट एवं मोमेंटम इन्वेस्टमेंट में अंतर की बात करें तो इनमे मुख्य अंतर यही है की जहाँ ग्रोथ इन्वेस्टमेंट में चयनित कंपनियां उनके फंडामेंटल रूप से मजबूत होती हैं तथा लम्बे समय तक उनकी आय में वृद्धि होती रहती है, वहीँ मोमेंटम इन्वेस्टमेंट के तहत चयनित कंपनियों के फंडामेंटल पर ध्यान दिया नहीं जाता है बल्कि तात्कालिक ट्रेंड का लाभ उठाया जाता है | मोमेंटम इन्वेस्टमेंट काफी कम समय के लिए किया जाता है इसलिए निवेशक में जल्दी से स्टॉक बेचकर शेयर बाजार से निकलने का सामर्थ्य होना जरुरी है |
4. डिविडेंड यील्ड इन्वेस्टमेंट स्टाइल:
शेयर बाजार में निवेश के इस तरीके में शेयर के हाई डिविडेंड यील्ड को ध्यान में रखा जाता है | निवेशकों का मानना होता है की हाई डिविडेंड वाले स्टॉक अन्य शेयर के मुकाबले कुछ परिस्थितियों में अच्छी कमाई करने का मौका देते हैं |
हालांकि लम्बे समय के निवेश के नजरिये से शेयर बाजार में निवेश का यह तरीका बिकुल सही नहीं होता है | क्योंकि लम्बे समय के लिए इन शेयरों का डिविडेंड यील्ड उच्च स्तर पर बना रहे इसकी कोई गारंटी नहीं होती है | इसके अलावा लम्बे समय के दौरान शेयरों की कीमत में आया बदलाव डिविडेंड यील्ड के लाभ को महत्वहीन भी कर सकता है |
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