वैसे तो इंडिया में बिजनेस को विभिन्न business entities के अंतर्गत रजिस्टर किया जाता है | और इन एंटिटी के अंतर्गत business या company को Register कराने के लिए अलग अलग योग्यता (eligibility) चाहिए होती है | इसके अलावा कंपनी या business को कौन सा दर्जा दिया जाय | इसके लिए कुछ क़ानूनी सीमाओं (Statutory Norms) का प्रावधान किया गया है | यह सब निवेश की गई पूंजी, ऋण की मात्रा एवं वार्षिक kamai (Annual Income) इत्यादि पर निर्भर करता है | इनमें से जो मुख्य business entities के types हैं | उनका वर्णन निम्नलिखित है |
विषय लिस्ट
1. स्वामित्व वाली कम्पनियां (Proprietorship):
इस type के business entities में केवल एक अकेला आदमी सम्पूर्ण उद्योग का मालिक होता है | बिज़नेस को चलाने के लिए वही पूंजी लगाता है | मजदूर व मशीनें इत्यादि खरीदने के लिए भी खुद जिम्मेदार होता है | Proprietorship में केवल एक व्यक्ति ही business सम्बन्धी सारे निर्णय लेता है | इसलिए फायदे और नुकसान का भी वह स्वयं प्रतिभागी होता है |
2. वन पर्सन कंपनी
वन पर्सन कंपनी की अवधारण कंपनी अधिनियम 2013 में की गई है | इसमें कैसे एक व्यक्तिगत व्यक्ति अपने बिजनेस को कॉर्पोरेट फ्रेमवर्क में प्रवेश कर सकता है, उसकी रूपरेखा तय की गई है | यह Business Entities किसी व्यक्तिगत व्यक्ति को कम से कम लायबिलिटी के साथ अपनी कंपनी का संचालन करने में समर्थ बनाती है | वन पर्सन कंपनी की सबसे बड़ी विशेषता यह है की, इसमें व्यक्ति को एक अलग और उसकी कंपनी को एक अलग आर्टिफीसियल व्यक्ति के रूप में देखा जाता है | जिससे व्यक्तिगत व्यक्ति की लायबिलिटी कम हो जाती हैं |
3. साझेदारी बिजनेस (Partnership):
Proprietorship type के business entities में दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी कंपनी या business को चला रहे होते हैं | इसलिए संगठन में किसकी क्या भूमिका होगी तय करने हेतु Indian Partnership Act 1932 के अनुसार सभी साझेदारों के द्वारा लिखित तौर पर एक Partnership Deed हस्ताक्षर की जाती है | और इस Partnership deed में लिखित शर्तों एवं नियमो के अनुसार ही Partners द्वारा business चलाया जाता है | अत: यह भी स्पष्ट है की कंपनी में Profit एवं Loss के हिस्सेदार सारे Partners होते हैं |
4. Private Limited Company:
एक Private limited company में कम से कम 2 और अधिक से अधिक 15 directors हो सकते हैं | और यदि Share Holders की बात करें तो कम से कम 2 और अधिक से अधिक 200 share holders हो सकते हैं | इस Type के संगठन Companies act 1956 के अंतर्गत Registrar of companies द्वारा अनुबंधित होते हैं | Private Limited Company में कंपनी का एक Memorandum & articles of association बनाया जाता है |जिसमे संगठन के सारे कार्यक्षेत्रों के प्रति नियम एवं शर्तें वर्णित होती हैं | और इसके आधार पर ही कंपनी का संचालन किया जाता है |
5. Public Limited Company:
Public limited company में कम से कम 7 share holders और कम से कम 3 directors का होना अनिवार्य है | PLC भी companies Act 1956 के अनुसार Registrar of companies के अंतर्गत Registered होती हैं | ऐसी कंपनियों को business start करने से पहले Trading Certificate लेना होता है | Management में कोई नियुक्ति और वैधानिक बैठकें आयोजित करने के लिए सरकार की मंजूरी की आवश्यकता पड़ती है | इसके अलावा public limited company अपने शेयर बेचने हेतु बाज़ार में विज्ञापन प्रसारित करवा सकती हैं | जबकि एक private limited company ऐसा नहीं कर सकती |
6. Limited Liability Partnership (LLP):
Limited liability partnership अधिनियम सन 2008 में संसद में पारित हुआ था | यह business entities (LLP) business को नम्यता (flexibility) प्रदान करता है | इसमें साझेदार आपसी लिखित समझोतों के माध्यम से अपने अपने दायित्व के लिए सीमा तय कर सकते हैं | LLP में Partnership Act 1932 लागू नहीं होता है | यदि किसी Partner द्वारा कोई अनाधिकृत निर्णय लिया जाता है, तो अन्य पार्टनर इसके परिणामो के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे |
7. सहकारी समितियाँ (Co-operative society):
Co-operative society को हिंदी में सहकारी समिति कहा जाता है | और सहाकरी समितियां state Co-operative society act 2002 के अंतर्गत राज्य के co-operative department से registered होती हैं | इस प्रकार के संगठन में कम से कम 10 सदस्य हो सकते हैं | और समिति का संचालन Memorandum & articles of association में लिखित शर्तों, नियमों एवं कार्यक्षेत्र के आधार पर ही किया जाता है |
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