पंखे के रेगुलेटर बनाने का व्यापार | Electronic Fan Regulators.

Electronic Fan Regulators से आशय पंखों की स्पीड को नियंत्रित करने के लिए बनाये जाने वाले उपकरण से है जिसे वर्तमान में घर बनाते समय ही बिजली फिटींग के दौरान लगा दिया जाता है | यदि हम भारत में विद्युत् के विस्तार क्षेत्र की बात करेंगे तो हम पाएंगे की कुछ सालों से राज्य एवं केंद्र सरकारें गाँव गाँव तक बिजली पहुँचाने के लिए प्रयासरत रही हैं | जिसका नतीजा यह है की वर्तमान में पहले के मुकाबले अधिक गांवों एवं शहरों में बिजली पहुँच चुकी हैं |

कहने का आशय यह है की Electronic Fan Regulators Making का यह बिज़नेस विद्युत् की पहुँच से जुड़ा हुआ बिज़नेस है अर्थात जहाँ बिजली नहीं है वहां न तो पंखे का उपयोग लोग कर सकते हैं और न ही Electronic Fan Regulators का | चूँकि वर्तमान में बिजली की पहुँच लगभग हर ग्रामीण, शहर, दूर सुदूर इलाकों तक है और जिन इलाकों में बिजली की पहुँच नहीं है भारत सरकार उन इलाकों तक बहुत जल्दी बिजली पहुँचाने के लिए प्रयासरत है |

इसलिए जहाँ भी नए घर बनते हैं उन घरों के हर एक कमरे में छत के पंखे इत्यादि के लिए पहले से जगह बनाई जाती है, उसी दौरान बिजली फिटिंग करते वक्त पंखे की स्पीड को नियंत्रित करने के लिए यह Electronic Fan Regulators लगाया जाता है |

Electronic Fan Regulators making-business

Electronic Fan regulators क्या है :

Electronic Fan Regulators को केवल छत के पंखे की स्पीड को नियंत्रित करने के लिए उपयोग में नहीं लाया जाता है बल्कि इसका उपयोग करके किसी भी प्रकार के पंखे जैसे टेबल पंखा, exaust पंखा इत्यादि की भी स्पीड नियंत्रित की जा सकती है |

लेकिन वर्तमान में पंखो में सबसे अधिक चलन में छत के पंखे ही हैं इसलिए अधिकतर तौर पर घरों में छत के पंखों को ध्यान में रखकर ही इन्हें पहले से फिट कर लिया जाता है | कहने का आशय यह है की चाहे कमरे में छत का पंखा हो या नहीं हो लेकिन Electronic Fan Regulators उस कमरे में पहले से मिल जायेगा क्योंकि बिजली फिटिंग के दौरान ही इसे भी फिट कर लिया जाता है | यद्यपि बिजली से चालित पंखों के यदि हम इतिहास की बात करें तो यह लगभग 75-78 साल ही पुराना है |

इसके शुरूआती दिनों में सामान्य पंखो के रेगुलेटर चलते थे जो पंखे की स्पीड को 3 से 6 स्तर तक नियंत्रित रख सकते थे | लेकिन इन सामान्य रेगुलेटरों की क्षमता पंखों की स्पीड को कम करना तो था लेकिन कम स्पीड में कम बिजली खर्च हो ऐसा कर पाने में ये अक्षम थे | इनमे चाहे पंखा कम स्पीड में चल रहा हो तब भी उतनी ही उर्जा व्यय होती थी और चाहे पूरी स्पीड में चल रहा हो तब भी उतनी ही |

उसके बाद आज से लगभग 20-25 साल पहले इंडिया में Electronic Fan Regulators को लाया गया जिसमे स्पीड एवं उर्जा दोनों को नियंत्रित करने का सामर्थ्य मौजूद था अर्थात यदि पंखा कम स्पीड में चलाया जाता था तो वह कम ही उर्जा व्यय करता था | इन रेगुलेटरों में किसी प्रकार के ट्रांसफार्मर का उपयोग नहीं किया जाता है और इन्हें हर तरह के पंखों में उपयोग में लाया जा सकता है |

लोगों की इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर जब किसी उद्यमी द्वारा इस प्रकार के रेगुलेटर बनाने का काम किया जाता है तो उसके द्वारा किया जाने वाला यह काम Electronic Fan regulators Making Business कहलाता है |

पंखे के रेगुलेटर की बिकने की संभावना :

जैसा की हम उपर्युक्त वाक्य में बता चुके हैं की वर्तमान में घर बनाते समय बिजली फिटिंग इत्यादि कामों के साथ घर के हर कमरे में Electronic Fan regulators लगाये जा रहे हैं | इसलिए इनकी मांग बाज़ार में वर्ष के बारह महीने लगातार बनी रहती है इसके अलावा जिन घरों में पहले से इस प्रकार के रेगुलेटर लगे रहते हैं उनके खराब होने पर उनके द्वारा भी ये नए ख़रीदे जाते हैं |

हालांकि Electronic Fan Regulators पुराने रेगुलेटर की तुलना में अधिक चलने वाले होते हैं इसलिए इनकी कीमत भी Conventional Regulators से कहीं अधिक होती है | लेकिन इनके डिजाईन आकार एवं अन्य विशेषताओं को देखते हुए लोगों द्वारा अधिकतर तौर पर Electronic Fan Regulators को ही खरीदा जाता है | इसलिए इनकी विशेषताओं को देखते हुए कहा जा सकता है की आने वाले दिनों में इनकी डिमांड और बढ़ सकती है |

आवश्यक कच्चा माल मशीनरी एवं उपकरण:

इस बिज़नेस को शुरू करने में प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल की लिस्ट कुछ इस प्रकार से है | जहाँ तक मशीनरी एवं उपकरणों का सवाल है उसका जिक्र हम इसी वाक्य के अंत में करेंगे |

  • Triac
  • Diac
  • Resistors
  • Ferrite core coils
  • Potentiometer lenier
  • प्रिंट किये हुए सर्किट बोर्ड
  • प्लास्टिक केसिंग
  • विभिन्न प्रकार के स्क्रू
  • सोल्डर, Screws इत्यादि

मशीनरी एवं उपकरणों में एक 10 MHz Oscilloscope, दो मल्टीमीटर एवं हैण्ड टूल की आवश्यकता हो सकती है |

निर्माण प्रक्रिया (Manufacturing Process):

सर्वप्रथम उपर्युक्त दर्शाए गए कच्चे माल को बाज़ार से खरीद लिया जाता है उसके बाद diacs, triacs, capacitors, resistors, coils इत्यादि को पहले से डिजाईन किये गए एक सर्किट बोर्ड में Assemble कर लिया जाता है | उसके बाद इस Assemble इकाई को प्लास्टिक से कवर किया जाता है और पैक करके मार्किट में बेचकर कमाई की जाती है | जहाँ तक इसकी गुणवत्ता का सवाल है ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैण्डर्ड ने इसके लिए IS:11037 1984 , 8-2000 इत्यादि मानक निर्धारित किये हैं |

Leave a Comment