क्या होता है रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट, RBI इनमें क्यों बदलाव करता रहता है।

भारत में सभी प्रकार के कमर्शियल बैंकों को नियंत्रित एवं विनियमित करने की जिम्मेदारी भारतीय रिज़र्व बैंक को दी हुई है। आपने कई बार समाचारों में बैंकिंग या आर्थिक जगत के समाचार पढ़ते वक्त रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, एमएसऍफ़ इत्यादि शब्द अवश्य सुने होंगे । लेकिन ये होते क्या हैं, यह शायद ही आपको मालूम हो

भारतीय रिज़र्व बैंक जब अपनी क्रेडिट पालिसी बनाता है, तो उसमें रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट इत्यादि का शब्दों का इस्तेमाल बहुतायत मात्रा में किया जाता है। और आए दिनों हम समाचारों में भी पढ़ते रहते हैं की Repo Rate में बढ़ोत्तरी कर दी या उसे घटा दिया। हाल ही में जब हम यह लेख लिख रहे हैं तो भारतीय रिज़र्व बैंक ने रेपो रेट को 50 आधार अंक बढ़ा दियाजिससे अब रेपो रेट की दर 4.9% से बढ़कर 5.40% हो गई।

रेपो रेट क्या है

रेपो रेट क्या होता है (Repo Rate Kya hai)

रेपो रेट की यदि हम बात करें तो यह वह ब्याज दर होती है, जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक देश में चल रहे वाणज्यिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है । यदि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया रेपो रेट में वृद्धि करता है, तो इसका मतलब यह हुआ की बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक से पहले की तुलना में अधिक ब्याज दरों पर रों मिलेगा।

जिसके चलते बैंक भी आगे अपने ग्राहकों को अधिक ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करेंगे। इसके अलावा बैंक लोगों को बचत करने हेतु आकर्षित करने के लिए फिक्स डिपाजिट इत्यादि पर ज्यादा ब्याज ऑफर कर सकते हैं। यदि रेपो रेट कम होगा, तो बैंक द्वारा प्रदान किये जाने वाले लोन जैसे होम लोन, व्हीकल लोन इत्यादि भी सस्ते हो जाएँगे

आरबीआई रेपो रेट क्यों घटाता बढ़ाता है

भारतीय रिज़र्व बैंक रेपो रेट का इस्तेमाल बाज़ार में मुद्रा के चलन को नियंत्रित करने के लिए करता है। जब बाज़ार सामान्य स्थिति में होती है, तो आरबीआई को रेपो रेट बढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन जब देश में महंगाई बढ़ने लगती है, तो उस स्थिति में बाज़ार में मुद्रा प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए आरबीआई रेपो रेट में बढ़ोत्तरी करता है।

जब आरबीआई रेपो रेट बढ़ाता है तो इसका मतलब हुआ की अब बैंकों को RBI से अधिक ब्याज दरों पर ऋण मिलेगा। इस कारण बैंक आरबीआई से पैसे कम लेंगे, और अपने ग्राहकों को भी वे महंगे ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करेंगे। जिससे उनके ग्राहक भी बैंकों से ऋण कम लेंगे, लोग खर्चा कम करेंगे। इस कारण बाज़ार में मुद्रा का प्रवाह कम होगा। तो बाज़ार में वस्तुओं की माँग में कमी आएगी, जिस कारण महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।

रिवर्स रेपो रेट   

जिस प्रकार से बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण लेते हैं, इसके उलट बैंक अपना पैसा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास जमा भी कराते हैं। बैंकों द्वारा जमा किये गए पैसे पर आरबीआई बैंकों को ब्याज देता है, RBI जिस दर से बैंकों के जमा पैसे पर ब्याज देता है, उसे ही रिवर्स रेपो रेट कहते हैं ।

रिवर्स रेपो रेट का इस्तेमाल भारतीय रिज़र्व बैंक बाज़ार में नकदी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए करता है। जब भी बाज़ार में संसाधनों से अधिक नकदी दिखाई पड़ती है, तो आरबीआई द्वारा रिवर्स रेपो रेट में बढ़ोत्तरी की जाती है। ताकि बैंक अपना पैसा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास जमा कर दें। और बाज़ार में नकदी कम हो जाय।

सीआरआर (Cash reserve Ratio):     

देश में जो बैंकिंग नियम लागू हैं, उनके मुताबिक देश में चल रहे हर वाणज्यिक बैंक को अपनी कुल नकदी में से एक निश्चित हिस्सा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास जमा करना होता है। इसी जमा नकदी को ही सीआरआर कहते हैं।

एसएलआर (Statutory Liquidity Ratio):  

कमर्शियल बैंकों द्वारा जो खास रकम भारतीय रिज़र्व बैंक में सीआरआर के रूप में रखी जाती है, वह पैसा बैंक जिस दर पर आरबीआई के पास रखते हैं, उसे ही एसएलआर कहते है। इसका इस्तेमाल आरबीआई बिना ब्याज दरों में कोई बदलाव किये नकदी की तरलता को कम करने के लिए करता है।

कहने का आशय यह है की आपातकाल में जब ब्याज दरों में कोई बदलाव किये बगैर आरबीआई बाज़ार में नकदी की तरलता को कम करना चाहता है तो वह एसएलआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों को अपनी कुल नकदी का अधिक हिस्सा आरबीआई के पास जमा कराना होता है, जिससे बैंकों के पास नकदी की कमी हो जाती है।

एमएसएफ (Marginal Standing Facility):

भारतीय रिज़र्व बैंक ने पहली बार वित्त वर्ष 2011-12 में वार्षिक मोनेटरी पालिसी रिव्यु के दौरान एमएसऍफ़ का जिक्र किया था। और इसे उसी वित्तीय वर्ष की 9 मई 2011 से लागू भी कर दिया। एमएसऍफ़ में सभी शेड्यूल वाणज्यिक बैंक अपनी कुल जमा का 1% हिस्सा आरबीआई से एक रात के लिए लोन ले सकते हैं। यह सुविधा सभी कार्यकारी दिवस जिसमें शनिवार शामिल नहीं है, को ली जा सकती है।       

यह भी पढ़ें

Leave a Comment