क्या दुनिया को 2008 जैसी मंदी का सामना फिर से करना पड़ेगा? क्या हैं आशंका के कारण।

कोरोना के संकट ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को झिंझोड़कर रख दिया है। जब से दुनिया में कोरोना संकट का दौर शुरू हुआ है, दुनिया की अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं का मंदी की चपेट में आने की संभावना बढ़ गई है। और रूस और युक्रेन के युद्ध ने इस खतरे को और बढ़ा दिया है। यही कारण है की अब बाज़ार से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है की, मात्र कुछ ही महीनों बाद दुनिया के बाज़ारों में 2008 जैसी मंदी देखने को मिल सकती है।

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कोरोना और रूस युक्रेन युद्ध मंदी के मुख्य कारण    

बाज़ार के जानकारों ने संभावना जताई है की एक बार फिर से पूरी दुनिया के बाज़ारों में मंदी की भारी बरसात होने वाली है । कोरोना और रूस युक्रेन युद्ध रुपी बादलों ने इस मंदी की बारिश की संभावना को और बढ़ा दिया है। जहाँ पिछले दो सालो से अधिक समय से पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही थी, वही दुनिया भर के बाज़ार रूस युक्रेन युद्ध के शुरू होने से अस्त व्यस्त हो गए।

भले ही लड़ाई दो मुल्कों के बीच हो रही हो, लेकिन जब से इस युद्ध का प्रारम्भ हुआ है। तब से इसका नकारात्मक असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं पर देखा जा रहा है। कोरोना के कारण पहले से सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्थाओं के सामने इस युद्ध ने सप्लाई का नया संकट खड़ा कर दिया है।

इस युद्ध से अमेरिका, यूरोप सहित एशिया के देशों की सप्लाई चेन प्रभावित हुई है। यही कारण है की अब बाज़ार के विशेषज्ञों को लग रहा है की एक बार फिर से दुनिया के बाज़ारों में 2008 जैसी मंदी दस्तक दे सकती है ।

यहाँ तक की दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति एलोन मस्क भी इस आशंका से चिंतित है, और भारतीय बाज़ारों में भी अनिश्चिताओं का दौर जारी है।

आर्थिक मंदी क्या होती है?  

अर्थ का अर्थ धन यानिकी वित्त से लगाया जाता है, तो क्या धन की कमी होना आर्थिक मदनी होती है? नहीं, वास्तव में किसी भी देश की प्रगति उस देश की अर्थव्यवस्था पर निहित होती है । अर्थव्यवस्था का तेजी से हो रहा विकास उस देश की प्रगति का सूचक होता है।

लेकिन जब देश की अर्थव्यवस्था लगातर कम से कम तीन तिमाही के लिए थम जाती है रुक जाती है, देश में बरोजगारी बढ़ने लगती है, महंगाई बढ़ने लगती है, लोगों की कमाई अपेक्षा से ज्यादा घटने लगती है। तो इस स्थिति को ही आर्थिक मंदी कहा जाता है।

आर्थिक मंदी की संभावना को कोरोना और उसके बाद शुरू हुए रूस युक्रेन युद्ध ने बहुत अधिक बढ़ा दिया है। यही कारण है की अब बाज़ार के जानकार 2008 जैसी आर्थिक मंदी आने की संभावना जता रहे हैं।

किन देशों पर मंदी की मार अधिक होगी

इस तरह के क्षेत्र में काम करने वाली विभिन्न संस्थाओं और फर्म ने दुनिया के बाज़ारों को मंदी के बारे में सचेत किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है की आने वाले एक वर्ष के भीतर यानिकी 12 महीनों के अन्दर दुनिया की अधिकतर अर्थव्यवस्थाएँ मंदी की चपेट में होंगी।

आगे इसी रिपोर्ट में कहा गया है की दुनिया के केन्द्रीय बैंक महंगाई रोकने के लिए जो सख्त नीतियाँ अपना रहे हैं, और जीवनयापन करने की लागत जो दिन प्रतिदिन बढती जा रही है। यही दुनिया के बाज़ारों को 2008 जैसी मंदी की तरफ धकेल रही हैं। और दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं जैसे अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन इत्यादि के मंदी की चपेट में आने का खतरा बढ़ता जा रहा है।

सेंट्रल बैंकों की सख्त नीतियाँ भी मंदी की तरफ ही ले जा रही है

इन दिनों दुनिया भर का सप्लाई चेन बाधित होने से जब महंगाई अपने चरम पर पहुँच चुकी है। तो इस समय दुनिया भर के केन्द्रीय बैंकों द्वारा सख्त नीतियाँ अपनाई जा रही हैं, ताकि वे किसी भी तरह महंगाई को नियंत्रित करने में सफल हों। लेकिन उनकी सख्त नीतियों के के कारण अर्थव्यवस्थाओं पर सकारात्मक प्रभाव नहीं दिखाई दे रहा है।

केन्द्रीय बैंकों की सख्त नीतियों के चलते वैश्विक विकास नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है। यही कारण है की पूरी दुनिया के बाज़ारों में नौकरियों में कमी आ रही है, कमाई में कमी हो रही है। और महंगाई बढ़ने के कारण लोग जितना कमा रहे हैं वह भी कम ही पड़ रहा है।

मंदी से अलग अलग देश अलग अलग रूप से प्रभावित होंगे

रिपोर्ट की मानें तो अभी फ़िलहाल महंगाई से दुनिया को निजात मिलने वाली नहीं है। और अब तो इसका दबाव सिर्फ कमोडिटी बाज़ार तक ही नहीं, बल्कि जॉब सेक्टर में भी दिखाई देने लगा है। नोमुरा की इसी रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में महंगाई पिछले 40 सालों का रिकॉर्ड तोड़ रही है। कहने का आशय यह है की अमेरिका में पिछले 40 सालों में इतनी महंगाई नहीं हुई, जितनी अब है।

आर्थिक मंदी का असर अलग अलग देशों में अलग अलग हो सकता है। और अमेरिका सहित कई अन्य देशों में अक्टूबर से दिसम्बर तक के बीच आर्थिक मंदी आने की संभावना जताई जा रही है। और एक बार मंदी आने पर इसका असर छह महीने से पहले समाप्त होने वाला नहीं है।

रूस के गैस सप्लाई रोकने पर पूरा यूरोप मंदी की गिरफ्त में आ सकता है  

इसी रिपोर्ट में कहा गया है की रूस युक्रेन युद्ध के बीच, यूरोपीय देश रूस के खिलाफ जिस तरह से बयानबाजी करते नजर आ रहे हैं। ऐसे बयानों आने वाले समय में प्रतिकूल असर दिखाई दे सकता है।  और यदि रूस ने यूरोपीय देशों के खिलाफ कोई ऐसा एक्शन जैसे गैस सप्लाई रोकने का निर्णय ले लिया। तो पूरा यूरोप अपने आपको मंदी की गिरफ्त में आने से नहीं बचा पाएगा।

संभावना यह जताई जा रही है की आने वाले एक साल के भीतर यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था में 1% तक की गिरावट देखने को मिल सकती है। और मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, कनाडा में ब्याज दरों के बढ़ने का प्रतिकूल असर दिखाई दे सकता है। अनुमान यहाँ तक जताया जा रहा है की दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था में तो इसी साल 2 से 2.5% तक की गिरावट आ सकती है।

भारत पर कैसा होगा आर्थिक मंदी का असर  

रिपोर्ट के मुताबिक भारत का बाज़ार भी आर्थिक मंदी से अछूता नहीं रहेगा। लेकिन यूरोपीय देशों के मुकाबले भारत और चीन जैसे बड़े बाज़ारों में इस मंदी का असर कम होने की उम्मीद है। रिपोर्ट का मानना है की चीन सरकारी नीतियों के बलबूते आर्थिक मंदी से निबटने में सक्षम हो जाएगा। लेकिन चीन पर भी कोविड 19 का असर जारी रहने की संभावना है।

जहाँ तक अपने देश भारत की बात है यहाँ पर थोक महंगाई की दर पिछले सोलह सालों के उच्च स्तर पर पहुँच चुकी है। 1991 में थोक महंगाई की दर 16% पर पहुँच चुकी थी, वही आज है। हालांकि महंगाई को काबू करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने दो पर रेपो रेट में वृद्धि की है। लेकिन इससे भी आम जन मानस की परेशानी कम होते हुए नहीं दिखाई दे रही है।

भारतीय रुपया भी डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हो रहा है, और वर्तमान में सबसे निचले स्तर पर पहुँच चुका है। लेकिन इन सबके बावजूद रिपोर्ट का मानना है की, भारत आर्थिक मंदी से निपटने में सक्षम हो जाएगा।

शेयर बाज़ारों की क्या स्थिति होगी   

इसी रिपोर्ट में शेयर बाज़ारों के बारे में भी बात की गई है। जिसमें कहा गया है की दुनिया भर के बाज़ारों में अनिश्चितता, अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। और आने वाले कुछ समय तक इनका यही हाल रहने वाला है। अर्थात शेयर बाज़ारों की स्थिति में भी अभी कोई सुधार होने की उम्मीद नहीं है।  

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